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किसी धार्मिक पुस्तक का एक श्लोक उठाकर मनमाफिक चरित्र गढ देना उस  धर्म के करोड़ो – करोड़ो  मानने वालों के प्रति अपराध है आजकल जिसके भी मन मे आता है वह सोसियल मीड़िया में बीडियो , आडियो व प्रसंगों को तोड़ मरोड़ कर भ्रामक तत्थ्यों का प्रकाशन कर देता है ।

ऐसे ही एक प्रकरण मे विकास चक्रकीर्ति  ने एक भ्रामक तत्थ्य प्रस्तुत किया यदि उन्होंने बाल्मीकि रामायण पढी होती तो राम के चरित्र पर सवाल नही उठाते ।

बाल्मीकि रामायण में उत्तर काण्ड़ का 17वां सर्ग के आठवे व नौवे श्लोक मेंं सीता रावण को रावण के पूछने पर अपनी उत्पत्ति की कथा बताते हुवे कहती है । हे रावण आपका सत्कार है आप मेरी उत्पत्ति का रहस्य जानना चाहते हो तो सुनों , बृहस्पति के पुत्र कुसजध्वज मेरे पिता है, मै उन्ही की पुत्री हूँ ,मेरे पिता रोज वेदाभ्यास करते थे , मै उसी वेदाभ्यासी पिता की बांग्मयी रूप मे प्रकट हुई पुत्री हूँ वह कहती है कि मेरा लालन पालन मेरे पिता ने वेद वांग्मय से किया है और मेरी उत्पत्ति भी इसी से है यानि मै,किसी के गर्भ से नही बल्कि वेद वाणी से उत्पन्न  हुई हूं  , वे बताती है कि मेरी(सीता की) उत्पत्ति वेद वाणी के रूप में हुई है सीता की उत्पत्ति सामान्य बच्चें की तरह नही है। श्लोक मे ही स्पष्ठ कर दिया गया है कि सीता वेद वाग्मयी है, यनि वेदों के श्वर ही सीता है । उनका सामान्य कन्यां की तरह ना तो उत्पत्त्ति हुई है ना ही परवरिश वे रावण को बता रही है । “वाग्मयी कन्यां सीता वेदमयी स्मृता; …….यनि पूर्ण यौवना के रूप मे ही सीता सर्वकाल मे अजर , व अमर है , व उपस्थित है सीता रावण को अपने बारे में और रहस्य बताते हुवे कहती है कि हे महाबिद्वान रावण ! शाम्भुक नाम का दैत्यराज ने मेरे से विवाह की इच्छा प्रकट की तो मेरे पिता ने कहा हे दैत्यराज यह तो बिष्णुपत्नी है ।मैने संकल्प किया है कि इसका विवाह बिष्णु से ही होगा , वह पिता से कुपित हो गया शाम्भुक ने रात्री मे कपट से मेरे पिता को मार ड़ाला , जिनकी चिता मे मेरी माता ने भी प्राणों का त्याग कर दिया ।, शाम्भुक नाम ततों राजा दैत्यानाम कुपितों भवत् ..(बाल्मीकि रामायण सर्ग 17श्लोंक संख्या 13) तब से मै अकेली ही हूं विष्णु को पति रूप मे पाने के लिये हिमालय मे तपस्या कर रही हूं , , नारायणों मम पति: (श्लोक -17) सीता के वचन सुनकर रावण क्रोधित हो जाता है ,कहता है मै परम भैभव शाली हूँ विद्वान हूँ मेरे सम्मुख बिष्णु कुछ भी नही । वह सीता से कहता है तुम मेरी पत्नी बन जाओं तब रावण क्रोधित होकर सीता के बाल पकड़ कर पुष्पक विमान मे बैठाने की कोशिस करता है । और कहता है कि मै तुम्हें लंका ले जाऊगा , तब सीता मे अपने तपोबल से अपने सारे केश काट डा़ले , रावण बालों के साथ सीता को नही पकड़ पाया । वह रावण से कहती है कि तुमने मेरे केश का स्पर्श कर अक्षम्य अपराध किया है अब मै अग्नि में प्रवेश करते हुवे लंका मै ही रहकर तुम्हारे विनास का कारण बनुंगी और वे अग्नि मे प्रविष्ठ हो गई , रावण ने इन्हे अग्नि रूप में ही समुद्र मे फैंक दिया ,।स्पष्ठ है कि सीता कोई सामान्य स्त्री नही है । वाल्मीकि सीता के रहस्य को समझाते हुवे इस कहानी को इसी सर्ग में अन्य प्रकार से भी समझाते है । वह लिखते है कि रावण को एक कमल के फूल में एक कन्यां दिखी जिसे वह लंका ले गया ,रावण का एक विद्वान मन्त्री जो लक्षणों का ज्ञाता है लक्षणों को देखकर कहता है कि हे रावण यदि यह कन्यां लंका मे रही तो तुम्हारे बध का कारण बनेगी तब रावण इस कन्यां को एक कलस में डालकर समुद्र मे फैक देता है ।यही तेजस्वी कन्यां समुद्र से पृथ्वी मे प्रविष्ठ हो गई राजा जनक के राज्य की सीमा मे पहंच गई जनक के राज्य मे अकाल पड़ गया तो बिद्वानों ने उन्हें धरती जोतकर अन्नादि उत्पन्न करने की सलाह दी, वही नि: सन्तान जनक को सीता हल के फल मे टकराकर प्राप्त हुई , इस कथा मै भी सीता का जन्म सामान्य नही है , आगे के श्लोको में बाल्मीकि कहते है यह वेदमती सीता की उत्पत्ति सतयुग मे हुई अब त्रेता युग है।

अब कथाकारों को व उनके चेलों को स्पष्ठ करना चाहिये कि वह किस आधार पर सीता की उम्र विवाह के समय छ: वर्ष होना बताते है सामान्यत: हल के अग्र भाग को ही सीता कहा गया है । जो कथावाचक यह अनर्गल प्रलाप कर रहे है उनमें से कुछ अपने को जगदगुरू भी कहते है । यह सर्वविदित है कि सीता पृथ्वी के गर्भ से हल के फल के रूप मे प्राप्त हुई लव व कुश को राम को सौपकर फिर से जीवित अवस्था में पृथ्वी मे समा गई । सीता का जन्म वेद मन्त्रों से हुवा , वह आज भी जीवित ही है ,सीता हमेशा ही पूर्ण यौवना होती है ना तो गर्भ से जन्म लेती है ना ही मरती है , वह बिष्णु पत्नी होने से सृष्ठि के विकास व पालन करने मे योगदान देती है । राम का जन्म भी सामान्य नही है बाल्मीकि रामायण में ही राम माता कौशल्या को अपनी उत्पत्ति का सारा बृतान्त सुनाकर कहते है , वह माता कौशल्या को शंख (शब्द)चक्र(ब्रह्माण्ड की गति ) गदा (अग्नि) को धारण कर कहते है माता मै अब बाललीला करुंगा ।

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