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इन दिनों दलित विमर्श के मुख्य केन्द्र बिन्दु  राजरतन अम्बेदकर बने है ।बामन मेश्राप व राजरतन अम्बेदकर क्षत्रिय जातियों मे सुमार रही ओ बी सी  समुदाय को जय भीम बोलना सिखा रहे है । राजरतन अम्बेदकर भीम राव अम्बेदकर के पोते है , जबकि बामन मेश्राब वामसेफ के नेता है इन दिनों इन दोनो के प्रवक्ता के तौर पर यू ट्यूब चैनलों मे कई यादव सामाजिक कार्यकर्ता राजरतन अम्बेदकर व वामसेफ के मुख्यकर्ता धर्ता बामन मेंश्राब के मार्गदर्शक बनकर नास्तिकवाद के पुरोधा के रूप मे चर्चित हो रहे है व नास्तिक आन्दोलन के मार्गदर्शक बन रहे है । यही नही यदुवंशी दलित विमर्श के मार्गदर्शक    और उनके परामर्शदाता के रूप मे बढ चढ कर आगे आ रहे है ।बामसेफ के प्रमुख बामन मेश्राप अब मायावती की बहुजन समाज पार्टी को खूब खरी -खरी सुना रहे है पहले तिलक तराजू और तलवार इनको मारों जूते चार कहने वाली मायावती की ब स पा को ब्राह्मण समाज ने सत्ता में क्या बिठा दिया , बामसेप के नेता बामन मेश्राब मायावती से नाराज हो गये है ।पुराणों केअनुसार भगवान श्रीकृष्ण की नारायणी सेना में शामिल यदुवंशी आपस मेॆं ही लड़ झगड़ कर नष्ट हो गये जो बच गये उन्हे वर्णशंकर कहा जाता है ब्राह्मण विरोधपढे लिखे यादवों की परम्पराओं मे है।राजरतन अम्बेदकर के बहाने यादव बुद्धिजीवी  दलित समाज की उस चेतना का लाभ जो  मान्यवर काशीराम स्थापित की थी  उसको अपने पक्ष के साथ जोड़कर भारत में एक बड़ी राजनैतिक उठक -पटक करना चाहते है इस योजना का हिस्सा वामसेफ भी है हो सकता है कि इस गठजोड़ मे बामन मेंश्राब का भी लाभ हो वे संघ की राजनीति का अनुशरण करते हुवे , यह संकेत दे रहे है कि वे भी किंग मेकर बनना चाहते है । जय भीम का नारा देकर वह संविधान के उस प्रविधान को कोश रहे है जिसमें लोक सभा व अन्य विधाई पदों में संयुक्त मतदान द्वाराआरक्षित पदों को भरने के प्राविधान है । । यद्यपि दलित समाज वामसेफ पेरियार व बौद्ध खेमों मे बटा है तथापि पेरियार व बौद्ध  नास्तिक ही है । नास्तिक मत का चलन बुद्ध  की नही  उनके  चेलों की देन है ।पच्चीस प्रतिज्ञाये जिसमे सनातन ब्रह्मा बिष्णु महेश को ना मानने की प्रतिज्ञाये शामिल है वह प्रतिज्ञाये बुद्ध की नही है अपितु अम्वेदकर की है । बामन मेश्राब व राजरतन अम्बेदकर दलित व ओ वी सी समुदाय को  राजनैतिक उद्देश्यों के लिये एक साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे है , इसका लाभ यादवों की पार्टियों को हो सकता है , क्योकि दलितों की पार्टी ब स पा का बामसेप का राष्ट्रीय नेतृत्व विरोध कर रहा है । ,इस योजना के योजनाकार विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर  व वे बड़े -बड़े अधिकारी  है ।

यदि देखा जाय तो सनातन धर्म  मे राजनैतिक सुविधाओं का ताना बाना जाति के आधार पर ही बुना गया है । यदि चार वर्ण ना होते तो चौथे वर्ण को आरक्षण नही मिल पाता , कहा जाता है कि बौद्ध बनने रे बाद जातिया समाप्त हो जाती है पर नव बौद्धों को भी जाकि का त्याग करने के बाद भी आरक्षण मिलना तय है ऐले मे वे यादव जो सनातन धर्म का चोला उतार कर बौद्ध धर्म अपना कर नवबौद्ध का लाभ भी ले सकते है । भारतीय संविधान जातियों को जन्म से मानता है जबकि मनुस्मृति इन्हें कर्म के आधार पर मानती है । पर जन्मना जातियों के लिये मनु को जिम्मेदार माननेे वालों मे समाज का एक बड़ा तबका अब भी मौजूद है जो मनुस्मृति का पाठक नही है सुनी सुनाई बातों पर ही यकीन कर लेता है ।

यादव चिन्तको के अनुसार वे बहुत ही कन्फ्यूज्ड है , वे अपने को क्षत्रिय नही मानते वैश्य वे है ही नही , इसी लिये पुराणों में कहा जाता है कि वे वर्णशंकर है । यद्यपि यह जमाना ही वर्णशंकर यनि हाईब्रीज  का जमाना है  डा. हरगोविन्द खुर्राना के अनुसार जैसे हाईब्रीड बीज केवल एक ही फसल देते है । अगली पीढी में वे बीज पहली पीढी की तरह मजबूत  नही होते उनमें कमियां आने लगती है  वह उन्नत फसल नही देते उनमें  क्रमश; गिरावट के बाद सातवी पीढी मे वे फिर से अपने  घटको मे मौलिक स्वरूप मे आ जाते है उसी प्रकार ,मनुष्यों मे भी संम्भव  है कुछ यदुवंशी बल वुद्धि  पराक्रम मे अपने मौलिक  स्वरूप में है परन्तु अनेक मौलिक स्वरूप में नही भी हो सकते है जैॊा कि सभी समुदाओं व जातियों मे संम्भव है राजरतन अम्वेदकर का मुख्य लक्ष्य अम्बेदकर को एक बौद्ध धर्म गुरु व ओ वी सी समुदाय अम्बेदकर को उनका राजनैतिक आदर्श मान रहा है मंण्डल कमिशन बनाने वाली काग्रेस व लागू करने वाले बी पी सिंह का वे नाम तक नही लेते राजरतन के झांसे मे आकर कुछ लोग वीहरी तौर पर या तो सनातन धर्म का विरोध कर रहे  स्वयं इसी धर्म का पालन करते हुवे रहे बौद्ध बनने का नाटक भी कर रहे है ।

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