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असैद्धान्तिक गणित का परिणाम है – श्रावण का नकली मलमास
👉उन सबको जिनको कि थोड़ी सी भी ज्योतिषीय बातें या पञ्चाङ्ग से जुड़ी हुई बातें समझने की क्षमता प्राप्त है, अवश्य ही मेरे इस लेख से ज्ञान का एक बड़ा लाभ होने वाला है। मेरा मानना ही नहीं एक निवेदन भी है कि लेख में दिए गए तथ्यों को समझना आपका एक सांस्कृतिक दायित्व है।
मेरे प्यारे धर्म और संस्कृति प्रेमी जनो, सादर नमस्ते।
पारम्परिक पञ्चाङ्गों के द्वारा दर्शाया जारहा श्रावण मलमास नितान्त गलत और असैद्धान्तिक गणित का परिणाम है।
क्रान्ति (Declination of Sun) से सिद्ध यानी वास्तविक सौर सङ्क्रान्तियों को ध्यान में रखा गया होता तो श्रावण में मलमास आ ही नहीं सकता। जो भी लोग श्रावण में मलमास देख रहे हैं या समाज को बता रहे हैं उनको पहले क्रान्तिसाम्य युक्त वास्तविक सौर सङ्क्रान्तियों की ठीक ठीक जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। तब ही सही पञ्चाङ्गीय मार्गदर्शन देना या प्राप्त करना सम्भव हो सकता है।
वास्तविक वैशाख सङ्क्रान्ति २१ मार्च २०२३ को ठीक ०२ बजकर ५५ मिनट पर हुयी है ( सिद्धान्ततः सूर्य के शून्य क्रान्ति और शुन्य ही भोगांश पर)। इसी दिन, रात्रि २२ बजकर ५५ मिनट पर, वैशाख शुक्ल पक्ष के साथ वैशाख मास शुरू होता है। अगली वृष सङ्क्रान्ति घटित होती है २० अप्रैल २०२४ के १३ बजकर ४४ मिनट पर जबकि वैशाख कृष्ण पक्ष के साथ वैशाख मास समाप्त होता है इसी दिन ०९ बजकर ४४ मिनट पर यानी सङ्क्रान्ति घटित होने से पहले ही। इस प्रकार वैशाख चान्द्र मास सङ्क्रान्ति रहित होने से अशुद्ध यानी मलमास सिद्ध हुआ। अस्तु हमारे श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम् ( एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग ) का वैशाख मलमास सिद्धान्तसम्मत और सही है।
स्वाभाविक है कि जब वैशाख में मलमास की सिद्धि हो चुकी है तो श्रावण मास में पुनः मलमास के होने का प्रश्न ही नहीं होता है। लगभग ३२ माह से पूर्व अगला मलमास नहीं आता। पारम्परिक पञ्चाङ्गों में भी परस्पर अगर सङ्क्रान्ति भेद होगा तो उनके मलमास या क्षयमास अलग हो जाया करेंगे। जितने मुंह उतनी बातें। जितने अयनांश (वास्तविक सम्पात से पञ्चाङ्गकारों द्वारा लिये जाने वाले काल्पनिक सम्पात के बीच का अन्तर अयनांश कहलाता है) उतने मलमास। पुणे महाराष्ट्र से प्रकाशित उक्त तिलक पञ्चाङ्ग में इस संवत् में कोई मलमास है ही नहीं । और है तो अगले संवत् के चैत्रमास में है। तिलक पञ्चाङ्ग की मकर सङ्क्रान्ति आजकल १० जनवरी को होती है जबकि पारम्परिक अन्य पञ्चाङ्गों की मकर सङ्क्रान्ति १४ या १५ जनवरी को हो रही है। सच्चाई ये है कि मकर सङ्क्रान्ति का सम्बन्ध परमक्रान्ति (Maximum Declination )यानी सूर्य की २३°और लगभग २७’ क्रान्ति से होता है जो कि २१/२२ दिसंबर को होती है। इसका अर्थ ये हुवा कि ०१ से ३१ जनवरी के बीच में किसी भी दिन मकर सङ्क्रान्ति का होना नितान्त असम्भव है।
सबको पता है कि पहले कृष्ण पक्ष होना और उसके बाद शुक्लपक्ष होने की बात प्रकृति के विरुद्ध है, वैदिक मार्गदर्शन के भी विरुद्ध है। स्वाभाविक क्रम तो ये है कि पहले बढ़ते क्रम का शुक्ल पक्ष (पूर्णिमा तक का ) हो और फिर घटतेक्रम का कृष्ण पक्ष (अमावस तक का )। परन्तु सिद्धान्त हीनता का और भी बुरा हाल ये है कि हमारे पञ्चाङ्गों में वर्ष शुरू होता है शुक्ल पक्ष से जबकि महीने शुरू होरहे हैं कृष्ण पक्ष से।
यही ढंग जब मलमास में सही नहीं बैठता तो मलमास के लिए अलग क्रम लिया जाता है। ऐसा इसलिए कि कृष्ण – शुक्ल पक्ष ( जिसको ज्योतिष के या पञ्चाङ्ग की भाषा में कृष्णादि या पूर्णिमान्त कहते हैं ) के क्रम से मल मास दिखाने में सङ्क्रान्ति की अड़चन आ जाती है। इसलिए वहां फिर नई तिकड़म से काम लिया जाता है। बीच का शुक्ल और उसके बाद का कृष्ण पक्ष का तो मल मास और उस मलमास से आगे का कृष्ण और और बाद का शुक्ल पक्ष शुद्ध मास। अब इस बात को उदाहरण से समझने की कोशिश करें।
पारम्परिक पञ्चाङ्गों में ०४ जुलाई २३ से श्रावण कृष्ण पक्ष (श्रावण मास ) शुरू होता है (वास्तव में ये सिद्धान्ततया आषाढ़ कृष्ण पक्ष होना चाहिए था ) और ०१ अगस्त को पूरा होता है। इस बीच में १६ जुलाई को कर्क सङ्क्रान्ति होती है। नियमतः सङ्क्रान्ति युक्त होजाने से ये मलमास नहीं हो सकता। इसी तरह ०२ अगस्त से शुरू हुवा श्रावण ३१ अगस्त को पूरा होता है और १७ अगस्त २३ को सिंह सङ्क्रान्ति होती है। नियमतः ये भी मल मास नहीं हो सकता। इसी से आधा श्रावण पहले का और आधा श्रावण बाद का लेकर मनमर्जी पूरी के जाती है। है कोई इन पञ्चाङ्गकारों को पूछने वाला????
वैसे भी, पारम्परिक पञ्चाङ्गों में १७ जुलाई को (सूर्य क्रान्ति २१ अंश १६ कला २३ विकला ) ०५ बजकर २९ मिनट पर सूर्य का कर्क प्रवेश (९० अंश) दिखाया गया है। यह सब खगोलिकी की सैद्धान्तिक गणित के साथ वैषम्य में है। ९० अंश का भोगांश होने पर क्रान्ति, परम स्थिति पर होनी चाहिए। और अगर २१ अंश १६ कला २३ विकला है तो सूर्य भोगांश ११४ अंश और १२ कला के लगभग होना चाहिए। अस्तु, श्रावण का मलमास तो सर्वथा मिथ्या आरोपण है। मेरी इस बात को पञ्चाङ्गीय गणित के जानकार या मेरे विद्यार्थी अच्छे से समझ सकते हैं। अन्यों को थोड़ा कठिनाई रहेगी।
भारत के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग श्री मोहन कृत्यार्ष पत्रकम् को देखें तो पाएंगे कि वास्तव में इस संवत् का वास्तविक मलमास वैशाख में बनता है। पारम्परिक पञ्चाङ्गकारों से गलती हो रही है और उसका कारण है सम्पात (वसन्त तथा शरद सम्पात ) और अयनों (उत्तरायण और दक्षिणायन ) से सम्बद्ध, ऋतुबद्धता पूर्वक सौरसङ्क्रान्तियों नकारना।इस नकारे से ही गलत चान्द्रमासों का लिया जाना हो रहा है और इसी से समस्त भारत में लगभग सभी पारम्परिक पञ्चाङ्ग अशुद्ध छप रहे हैं।
शिक्षित जनता को आवश्यक है कि वे पञ्चाङ्गों के विषय को समझने का प्रयास करें। तभी पञ्चाङ्गकारों को गलत पञ्चाङ्ग बनाने के प्रति एक चेतना मिल पाएगी। अन्यथा अन्धेनैव नीयमाना यथान्धाः तो चल ही रहा है, चलता भी रहेगा। धन्यवाद। 🙏
आचार्य दार्शनेय लोकेश
सम्पादक -श्री मोहन कृति आर्ष पत्रकम्
( एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग)