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आजादी के पूर्व भारत में 1932 में अंग्रेजो ने भारत राष्ट्र की एकता अखण्डता तो तोड़ने के लिये एक योजना बनाई इस योजना को संवैधानिक समस्या का समाधान कहा गया इसके लिये तीन गोलंमेज सम्मेलन हुवे इस योजना के अनुसार देश में तीन भागों में बांटने की योजनाये थी , इसके तहत हिन्दु मुस्लिम , व एस सी राष्ट्रीयता का सिगूफा छोड़ा गया , 16 अगस्त 1932को तत्कालिक ब्रिटिस प्रधानमन्त्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने पूर्व मे गठित मताधिकार समिति की शिफारिश पर साम्प्रदायिक आधार पर मताधिकार देने का निर्णय किया जिसमे अलग – अलग राष्ट्रीयताये कल्पित की गई इसका मकसद भारत की साम्प्रदायिक एकता के साथ ही हिन्दु धर्म को दलित व हिन्दुओं मे तोडना था।, इसीे योजना के तहत दलितों को मूल निवासी व हिन्दुओं को आर्य आक्रमणकारी घोषित करने हेतु अंग्रेज इतिहासकारों की मदद ली गई इस थ्योंरी रो इतिहास मे इतनी सफाई से प्रस्तुत किया गया कि देश के बड़े -बड़े नेता इनके झांसे मे आ गये । अब भी इतिहास की किताबों मे काल्पनिक तत्थ्य पढाये जा रहे है कि आर्यों ने मध्य ऐशिया से आये यहां आकर भारत के मूल निवासियों को पांच हजार साल पहले गुलाम बनाया, अंग्रेजो की स्थापित की गई यही अवधारणा 1932 मे सामप्रदायिक पचाट का आधार बनी । इसी पचाट से पाकिस्तान की अवधारणा का जन्म हुवा , अग्रेजों ने भारत के विभिन्न वर्गों में साम्प्रदायिक व जाति के आधार पर प्रथक – प्रथक निर्वाचक मंण्डल बनाये । इसमे मुस्लिमों व दलितों के लिये भी प्रथक -निर्वाचन मण्डल प्रदान करने की घोषणा की गई । इसक् समर्थकों मे ंमें सर सैय्यद अहमद के साथ ही अम्बेदकर भी पृथक निर्वाचन का समर्थन कर रहे थे। इसमें प्रविधान था कि मुसिलिम तो हिन्दुओं से पृथक है ही दलितों को भी हिन्दुओं से पृथक माना जाय । उन्हें पृथक निर्वाचन के साथ ही आरक्षण भी दिया जाय , काग्रेस की समझ मे आ गया कि यह अंग्रेजों की हिन्दु मुस्लिम ही नही अपितु हिन्दु – हिन्दु मे फूट डालने की भी योजना है ,इसी कारण गांधी जी ने पृथक निर्वाचन मण्डल का बिरोध करते हुवे इसके खिलाफ आमऱण अनशन कर दिया, एक देश मे पृथक निर्वाचन संम्भव भी नही था ,। गांधी व काग्रेस के अधिकांश नेता समझ रहे थे कि अलग – अलग निर्वाचन का मतलब है कि अलग – अलग प्रतिनिधियों का सामप्रदायिक व जातीय चुनाव जो जातीय संघर्ष को बढाकर बैमनस्यता का आधार तैयार कर सकता है । यह एक प्रकार से देश का जातिगत राजनैतिक विभाजन था ।
इसी बीच, दूसरे गोलमेज सम्मेलन के बाद 16 अगस्त, 1932 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने ‘भारतीय मताधिकार समिति’ की सिफारिश के आधार पर सांप्रदायिक पंचाट की घोषणा कर दी।
इस सांप्रदायिक पंचाट में अन्य अनेक प्रावधानों के साथ यह प्रावधान भी किया गया था कि दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की व्यवस्था की जाएगी। दलित नेता भीमराव अंबेडकर इस व्यवस्था का पुरजोर समर्थन कर रहे थे। अंबेडकर के प्रयास से सांप्रदायिक पंचाट में यह प्रावधान किया गया था कि दलितों को हिंदुओं से अलग एक अन्य वर्ग माना जाना चाहिए और उसके अनुसार उन्हें पृथक निर्वाचन मंडल व आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। अंबेडकर की इस राय को सांप्रदायिक पंचाट में स्वीकार कर लिया गया था।
कांग्रेस सहित महात्मा गांधी ने अंग्रेजों की इस चाल को विशुद्ध रूप से फूट डालो और राज करो की नीति के विस्तार के रूप में देखा और इसका तीखा विरोध किया।
अंग्रेजों के इस कदम के विरोध में गांधी जी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 20 सितंबर, 1932 को आमरण अनशन आरंभ कर दिया। मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, जयकर, तेज बहादुर सप्रू, घनश्याम दास बिड़ला इत्यादि नेताओं के प्रयासों से 24 सितंबर, 1932 ईस्वी को महात्मा गांधी और दलित नेता अंबेडकर के बीच एक समझौता हस्ताक्षर हुआ था। इस समझौते को इतिहास में ‘पूना समझौते’ के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के बाद गांधी जी ने अपना आमरण अनशन समाप्त कर दिया था।गांधी व अम्बेदकर के बीच हुवे समझौते के तहत भीमराव अम्बेदकर ने पृथक निर्वाचक मण्डल का परित्याग कर दिया , एस टी को हिन्दुओं के भीतर ही विधानमण्ड़लों मे आरक्षण दिया गया । इनके लिये 71सीटे निर्धारित की गई अंग्रेजों ने पृथक निर्वाचन में 147 सीटे आवंचित की थी ।केन्द्रिय विधानमण्डल (संसद) में एस सी का प्रतिनिधित्व तय करने के लिये संयुक्त मताधिकार की ब्यवस्था की गई ।तथा 18%सीटे आरक्षित कर दी गई । साथ ही यह भी ब्यवस्था की गई कि एस सी का कोई भी ब्यक्ति सामान्य सीट से भी चुनाव लड़ सकता है , इस प्रकार भारत में एस सी वर्ग को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है ।
अंग्रेजों के इस कदम के विरोध में गांधी जी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए 20 सितंबर, 1932 को आमरण अनशन आरंभ कर दिया। मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, जयकर, तेज बहादुर सप्रू, घनश्याम दास बिड़ला इत्यादि नेताओं के प्रयासों से 24 सितंबर, 1932 ईस्वी को महात्मा गांधी और दलित नेता अंबेडकर के बीच एक समझौता हस्ताक्षर हुआ था। इस समझौते को इतिहास में ‘पूना समझौते’ के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के बाद गांधी जी ने अपना आमरण अनशन समाप्त कर दिया था।गांधी व अम्बेदकर के बीच हुवे समझौते के तहत भीमराव अम्बेदकर ने पृथक निर्वाचक मण्डल का परित्याग कर दिया , एस टी को हिन्दुओं के भीतर ही विधानमण्ड़लों मे आरक्षण दिया गया । इनके लिये 71सीटे निर्धारित की गई अंग्रेजों ने पृथक निर्वाचन में 147 सीटे आवंचित की थी ।केन्द्रिय विधानमण्डल (संसद) में एस सी का प्रतिनिधित्व तय करने के लिये संयुक्त मताधिकार की ब्यवस्था की गई ।तथा 18%सीटे आरक्षित कर दी गई । साथ ही यह भी ब्यवस्था की गई कि एस सी का कोई भी ब्यक्ति सामान्य सीट से भी चुनाव लड़ सकता है।
क्या 1932मे दिया गया आरक्षण पाकिस्तान मे भी लागू है ?
1932 में अंग्रेजों द्वारा एसटी जातियों को दिया गया आरक्षण पाकिस्तान में लागू नहीं है क्योंकि अंग्रेजों की मान्यता के अनुसार हिंदू मुस्लिम वह दलित तीन अलग-अलग राष्ट्रीय थे कल्पित की गई थी जिसमें हिंदुओं को भारत वह मुस्लिम को पाकिस्तान दिया गया पाकिस्तान के हिंदुओं को भारत में पलायन करना था वह भारत के मुस्लिमों को पाकिस्तान जाना था इस पलायन की विभीषिका में लाखों लोगों की जानें चली गई इसके बाद भी पूर्ण रूप से दोनों देशों के हिंदू और मुस्लिम अपने अपने देशों में वापसी नहीं कर पाई अंत में जवाहरलाल नेहरू वह मोहम्मद अली जिन्ना के बीच एक समझौता हुआ इस समझौते के तहत जो भी हिंदू या मुस्लिम भारत या पाकिस्तान में रह गए हैं या रहना चाहते हैं उनको वहां रहने दिया जाएगा वह उनके हितों का भी संरक्षण किया जाएगा किंतु भारत के 80 वर्ग को संविधान का जो कवच मिला वह पाकिस्तान के शेड्यूल कास्ट को ओवैसी को वहां नहीं दिया गया क्योंकि यह मान लिया गया कि वह मुस्लिम राष्ट्रीयता है किसी भी दलित नेता ने पाकिस्तान वह बांग्लादेश में 1932 के प्रावधानों के तहतएस वर्ग को दिए जाने वाले आरक्षण की वहां कोई पैरवी नहीं की।अत: पाकिस्तान व बांग्लादेश में रह रहे दलित कभी भी यह नही कहते कि वे हिन्दु नही है । उनके पूर्वजों का कल्चर वहां उन्हे सकून प्रदान करती है , जबकि भारत मे दलित नेता उन्हे हीन भावना से उबरने ही नही दे रहे है । वह मनुवाद से मुक्ति चाहते है , पर मनु को नही जानते जब धर्म बदलने के बाद भी मुसलमानों ने जातिया नही बदली तो यह उम्मीद कम ही है कि एस टी ओ बी सी अपनी जातिया त्यागेंगे , यदि ऐसा हुवा तो फिर सभी अपनी जातियांछोड देंगे फिर देश में केवल आर्थिक रिस्तें ही शेष बचेंगे अमीरी व गरीबी पर आधारित जातिवाद कभी खत्म नही होगा ।