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देश की जेलो में यदि सौ लोग बन्द है तो उनमें से केवल 22% ही सजायाप्ता अपराधी है ।यह खुलासा इण्ड़िया जस्टिस रिपोर्ट 2022ने किया है , यदि दावे मे सच्चाई है तो , यह सोचनीय है कि देश का न्याय तन्त्र मे पर्याप्त सुधार की जरूरत है । 2010 कैदियों की संख्या 2.4 लाख थी जो 2021में बढकर 4.3 लाख हो गई है । जिसमें बढोत्तरी हो रही है समय.बढने के साथ ही इस संख्या मे बढोत्तरी हो रही है । यदि ताजा आंकड़ों की बात करे तो तो जेलों मे कैदियो के बढने के साथ ही जेलों की आबादी भी बढ रही है 2021 मे जेलो की आबादी 5.54 लाख पहुच चुकी है । इस समय.देश मे औसतन एक कैदी पर अनुमानत: 38 हजार रुपये वार्षिक व आन्घ्र प्रदेश मे, 2.11 लाख वार्षिक खर्च हो रहे है ।
इस समय जेलों में क्षमता से अधिक कैदी है और सुनवाई की गति अत्यधिक धीमी है । देश मे न्यायधीसों की भी अत्यधिक कमी है । सरकार व न्यायपालिका के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर आम सहमति ना होने से हालात खराब है ।, जिस गति से कैदी जेलों मे जा रहे है उस गति से मुकदमों का निस्तारण ना होना भी इस समस्या की जड़ है जेलों में इतना बडीसंख्या मे मानव संसाधन अपने मुदमों के इन्तजार मे अपना भविष्य की चिन्ता मे डूबा हुवा है जेल मे समा गये इन लाखो कैदियों में से हजारों कैदी ऐसे भी है जो अपराध मुक्त भी हो जायेगे, यनि वे किसी साजिश का शिकार है या फिर गलत फहमी मे पकड़े गये है ,बहुतों के पास तो मुकदमे लडने के लिये वकील तक नही है ,सरकार जो वकील नियुक्त करती है , वे रुचि कम लेते है । इस प्रकार मामुली घटनाक्रम होते हुवे भी उनकी जमानते नही हो पाती , ना ही उनकी सुनवाई ही आगे होती है ।