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दिल्ली के रामलीला मैदान मे जमीयत उलेमा-ए-हिंद का सर्वधर्म सम्भाव चिन्तन शिविर चल रहा था , इस सम्मेलन मे जमीयतें उलेमा हिन्द के प्रमुख मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा कि ईष्लाम कोई नया मत नही है यह सृष्ठि के आदि से है हिन्दु व सनातनी जिन्हें मनु कहते है । मुसलमान उसी आदि पुरुष को अदिम व हब्बा कहते है। । सामान्यत: सर्वधर्म सम्भाव की दृष्ठि से यह बात उचित लगती है पर यदि देखा जाय तो मजहबों के अपने बुनियादी सिद्धान्त है । जो एक दूसरे में भेद करते है , केवल यह कह देने से कि ओऊम् , अल्लाह व गौड़ सब एक ही है यह सतही तौर पर ही एक है ।

जमीयते ईस्लामी हिन्द भी जब अपनी जड़ों को खोजता है तो पाता है कि ईस्लाम तो चौदह सौ साल पुरानी सभ्यता है । ईस्लाम छटपटा रहा है इस धर्म के विद्वान चाहते है कि , ईस्लाम को भी सनातन धर्म जितना ही पुराना बता दिया जाय,।और लोग मान भी जाये ।मौलाना मदनी ने यही प्रयास किया ,जिसे जैन मुनि आचार्य लोकेश ने नकार दिया तथा ब्रह्मा नही होते तो मनु कहां से होते ,सनातन धर्म में ब्रह्मा ही सृष्ठि के देवता है । मदनी कहते है कि कुछ लोग बताते हैं कि मनु ओम को पूजते थे तब मैंने कहा कि इन्हें ही तो हम अल्लाह,आप ईश्वर,फारसी बोलने वाले खुदा और अंग्रेजी बोलने वाले गॉड कहते हैं।

यदि मनु के इस कथन पर विचार करें तो मनु सहित शिव, राम ,कृष्ण ,आदि सभी वेदों को मानते थे और वेदों में वर्णित निराकार ईश्वर को ही रचनाकार मानते थे। वेदों में ईश्वर का नाम अल्लाह कहीं नहीं लिखा। यह नाम तो फारसी व अरबी में कहा गया है , दोनो के माईमे भी एक से नही है इनमे शैद्धान्तिक भेंद भी है

।ईश्वर और अल्लाह मे शैद्धान्तिक अन्तर

(१) प्रथम अन्तर यह है कि ईश्वर सर्वव्यापक है, जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है।

(२) दूसरा अन्तर ईश्वर सर्वशक्तिमान है, वह कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता, जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नोंसे पैगम्बर को सहायता लेनी पडती है। इसका मतलब हुवा कि अल्लाह अनादि नही है उससे पहले फरिश्ते व जिन्न मौजूद थे

(३) तीसरा प्रमुख अन्तर है यह है कि ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है, जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी केवल उनका जिनकों कब्रों में दफनाया गया हैं।

चौथा अन्तर यह है ईश्वर क्षमाशील नहींहै । वह दुष्टों को दण्ड अवश्य देता है, जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है। जो भी अल्लाह पर ईमान लाता है ऐसे लोगो को वह मुसलमान बनने पर उनके पाप माफ़ कर देता है।

पांचवा अन्तर यह है कि ईश्वर कहता है, “मनुष्य बनों” मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् – ऋग्वेद 10.53.6,

जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों. सूरा-2, अलबकरा पारा-1, आयत-134,135,136ग

छटा अन्तर है ईश्वर सर्वज्ञ है, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालों की बातों को जानता है, जबकि अल्लाह अल्पज्ञ है।उसे पता ही नहीं था की शैतान उसकी आज्ञा पालन नहीं करेगा, अन्यथा शैतान को पैदा क्यों करता?

सातवा अन्तर यह है कि ईश्वर निराकार होने से शरीर-रहित है, जबकि अल्लाह शरीर वाला है, एक आँख से देखता है. अल्लाह के हाथ उन लोगों के हाथों के ऊपर हैं। – सूरा (अल-फतह) ४८, आयत १०
रब ने कहा कि हे शैतान तुझे किस बात ने सिजदा करने से रोका जबकि मैंने आदम को अपने दोनों हाथों से बनाया है। – सूरा (साद) ३८, आयत

आठवा अन्तर यह है कि वेद का ईश्वर आप्त पुरुषो के ह्दय में यह बात बताता है कि मैंने ईश्वर ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण के लिए दिया हैं-
यजुर्वेद 26/
‘ किन्तु कुरान ‘अल्लाह ‘काफिर’ लोगों (गैर-मुस्लिमो ) को मार्ग नहीं दिखाता” (१०.९.३७ पृ. ३७४) (कुरान 9:37) .ईशवर कहता है सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते ।।-(ऋ० १०/१९१/२)

अर्थ:-हे मनुष्यो ! मिलकर चलो,परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्व विद्वान,ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं,वैसे ही तुम भी किया करो।
क़ुरान का अल्ला कहता है ”हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।” (११.९.१२३ पृ. ३९१) (कुरान 9:123) .

नौवा अन्तर यह है कि

अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।-(ऋग्वेद ५/६०/५)

अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो। जबकि कुरान मे लिखा है ‘हे ‘ईमान’ लाने वालो (केवल एक आल्ला को मानने वालो ) ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।” (१०.९.२८ पृ. ३७१) (कुरान 9:28)

दशवा भेद यह है क्या क़ुरान के अल्लाह को ज्ञान नहीं है वे मुसलमानों का इम्तिहान लेता है तभी तो इब्रहीम से पुत्र की क़ुर्बानी माँगीं।
वेद का ईशवर सर्वज्ञ अर्थात मन की बात को भी जानता है उसे इम्तिहान लेने की अवशयकता नही।

इग्यारहवा अन्तर यह है कि अल्ला जीवों के और काफ़िरों के प्राण लेकर खुश होता है उसे कुर्बानी में पशु चाहिये
लेकिन वेद का ईश्वर मानव व जीवों पर सेवा और उनकी भलाई दया करने पर खुश होता है।

ये कुछ बुनियादी अन्तर है अनेको बाते ऐसी है जिनमे शैद्धान्तिक अन्तर है ।ये अन्तर बताते है कि काफी समानताओं के बाद भी दोनों मे बुनियादी अन्तर है लाखो वर्षो से जिस ओउम की मान्यता है उसकी पन्द्रह सौ साल पहले उत्पन्न हुवे ईश्लाम के अल्लाह में नहीं हैं.

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