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इन दिनों भारतीय राजनीति में कुछ अभिनव प्रयोग हो रहे है , जय श्री राम की राजनीति से मुकाबला करने के लिये जय भीम व जय मीम का नारा उछाला जा रहा है , जय श्री राम का नारा भा ज पा उछाल रही तो सपा के स्वामी प्रसाद मोर्य नमो बुद्धाय जय भीम का नारा उछाल रहे है , जय श्री राम के नारे के साथ ही जय भीम व जय मीम की राजनीति के केन्द्र में ओ बी सी समुदाय प्रमुख रूप से है ,एक राजनैतिक पार्टी भा ज पा जय श्री राम के नाम पर देश में सत्ता का सुख पा रही है तो हिन्दी भाषी राज्यों मे जय भीम व जय मीम के नाम पर सत्ता पाने के लिये समाजवादी पार्टी सहित ब स पा व अन्यनव अंकुरित पार्टिया मुराबला करने के लिये मैदान मे है ,। जय श्री राम के नारे के साथ सत्ता मे काविज भा ज पा नेतृत्व वाली राजनैतिक पार्टियों के समुहों का मार्गदर्शक यदि संघ परिवार कर रहा है, तो जय भीम व जय मीम के नारे का संरक्षण कथित तौर पर बामसेफ कर रहा है , संघ परिवार हिन्दुत्व की बिचारधारा पर काम कर रहा है तो बामसेफ , पेरियार की पूर्ण व अम्बेदकर की आंशिक विचारधारा पर काम कर रहा है । पेरियार की विचारधारा में जाति विहीन नास्तिक समाज की कल्पना मौजूद है जबकि अम्बेदकर जाति युक्त समाज को संविधान मे मान्यता दे चुके है , अम्बेदकर जातियुक्त समाज के लिये मनुस्मृति को जिम्मेदार मानते है तथा जातीयता रे आधार पर सुविधाये पाना बंचित जातियों का हक मानते है किसी जाति को बंचितों की श्रेणि मे रखने के लिये वे मनुस्मृति को जिम्मेदार मानते है , जबकि मनुस्मृति जन्मना जातिवाद को नही कर्म पर आधारित वर्णों को मानती है, मनु की वर्ण ब्यवस्था वह ब्यवस्था है जिसमें कर्म के आधार पर ब्यक्तियों को चार समुहों मे बांटा गया है ,ये वर्ण उस ब्यक्ति की योग्यता के कारण उसे मिलता है जिस वर्ण में वह कार्य कर रहा है ।यदि कोई ब्यक्ति अपने माता पिता के वर्ण को विरासतन स्वीकार कर उनके कार्य को आगे बढा रहा है , तो उसे माता पिता के वर्ण का लाभ मिल सकता है, यदि वह माता पिता के वर्ण का कार्य नही कर रहा तो मनु उसे अपने वर्ण को चुनने की आजादी देते है , पर भारतीय संविधान के निर्माता कहे जाने वाले अम्बेदकर जी ने देश के नागरिकों को धर्म बदलने की आजादी तो दी है पर वर्ण बदलने या चुनने की आजादी नही दी है , भारतीय संविधान अपने नागरिक को माता पिता के वर्ण को त्यागने वर्ण बदलने का अधिकार नही देता ,यद्यपि यह पैत्रिक कार्य बदलने की अनुमति देता है , किन्तु कार्य बदलने के बाद भी संविधान वर्ण बदलने को मान्यता नही देता , मनु की वर्ण ब्यवस्था मे यदि एक ब्राह्मण कन्या अपने पिता के वर्ण का त्याग कर किसी शूद्र वर्ण मे विवाह करती है तो मनु उसे यह आजादी देते है कि वह अपने पति का वर्ण को ही अपनी पहचान बना लें पर संविधान एक स्त्री व पुरुष को विवाह के बाद भी वर्ण बदलने की अनुमति नही देता , ।नव बौद्ध कहते है कि उन्होंने जाति व वर्ण की सड़ी गली वर्ण ब्यवस्था व परम्पराओं का त्याग कर दिया है , यदि त्याग ही कर दिया है , तो इस धर्म की सुविधाओं व बिकृति का भी त्याग कर देना चाहिये , किन्तु वह ऐसा नही कर पा रहे है ।
यदि जातियां कर्म से बनने लगी तो जन्म के आधार पर जातिगत सुविधाये नही मिल सकती , चूंकि मनुस्मृति कर्म के आधार पर वर्ण बदलने की वकालत करती है इसीलिये इसे यह राजनैतिक समुदाय हर साल जलाता है यदि मनु स्मृति की यह सच्चाई सामने आ गई तो जाति व वर्ण की जन्मना ब्यवस्था का दोषी मनु को नही ठहराया जा सकेगा । मनु कहते है कि जन्मने जायते शुद्रे संस्कारात द्विज उच्यते , यनि जन्म से सभी शूद्र है , शिक्षा दिक्षा व परवरिस व संस्कार किसी ब्यक्ति ऊँचा उठाते है जबकि संविधान कहता है कि ब्यक्ति शिक्षा से नही जन्म से ऊंच या नीच होता है , जो जिस जाति मे जन्म लिया है , वह कितना भी ऊँचा उठ जाय या नीचे गिर जाय पर संविधान उसे दलित व पिछड़ा या ऊची जाति का ही मानता है ।दलित व पिछड़ा धार्मिक पुस्तकों में नही है, यह शब्द संविधान की देन है , संविधान मे प्रदत्त सुविधाये ,अति पिछड़ा होने पर नही अपितु सम्पन्न होने पर भी ली जा सकती है इसके लिये सुचिबद्ध जातियों मे पैदा होना जरूरी है । जो सुचिबद्ध जातियां इसका लाभ नही ले पा रही है संविधान उनके लिये प्रविधान कर सकता है पर राजनैतिक रूप से सबल सत्ता का सुख ले रहे लोग ऐसा नही होने देते । आज भी देश की कुछ ही जातिया इस संविधान प्रदत्त सुविधाओं का पीढी दर पीढी लाभ ले रही है ,ये जातियां हिन्दु धर्म की रूढिगत परम्पराओं को अपने लिये अवसर तो मान रही है पर हिन्दु धर्म का त्याग कर अपने को बौद्ध प्रचारित करना दोहरी व अस्पष्ठ विचारधारा का नमुना है । देश मे जब इस समुदाय से पूछा जाता है कि इनका धार्मिक ग्रन्थ क्या है , तो वे कहते है कि संविधान ही उनका धार्मिक ग्रन्थ है , हर कोई जानता है कि संविधान एक राज ब्यवस्था चलाने का मान्य दस्तावेज है, इसमे अब तक सैकड़ों संसोधन हो चुके है ,यह धर्म चलाने का विधान नही है ।,यह राजनैतिक समुह कह रहा कि वे बुद्धिस्ट है पर उनका धर्म ग्रन्थ त्रिपिटक नही, संविधान है , बौद्ध ग्रन्थों के अध्ययन व परम्पराओ में में इनकी रुचि सार्वजनिक रूप से दिखाई नही देती , ना ही आचरण में इसके लक्षण दिखाई देते है , ।नव बौद्धों का यह समुह तमाम यू ट्यूब चैनलों मे कह रहा है कि बौद्ध धर्म मे जातिया या उप जातियां नही है , जबकि दुनिया भर मे फैले बौद्धों मे जातिया व उप जातिया , व जीवन चर्या मे प्रर्याप्त मतभेद, विभेद , जातिया व उप जातिया मौजूद है ।
इन दिनों वे लोग जो पेरियार के अनुयाई है , वे भी भीमराव अम्बेदकर का नाम लेकर नास्तिक मत का प्रचार कर रहे है । ये सनातन धर्म के धर्म ग्रन्थों पर आक्षेप ही नही लगा रहे इन्होने तो मनु स्मृति का दहन करने के बाद रामचरित मानस को भी जला दिया । इनका कहना है कि बौद्ध मत विज्ञान पर आधारित मत है , पर संसार मे ऐसा कोई बौद्ध धर्म ग्रन्थ नही जिसमें विज्ञान परक बाते लिखी हो , , हा तन्त्र शास्त्र की सैकड़ों पुस्तकें बौद्ध धर्म का हिस्सा है , जो समाज मे अनेको प्रकार की रूढिगत अमानवीय परम्पराओं को मान्यता देती है ।भीमराव अम्बेदकर बौद्ध तो बने पर इसका आधार , बौद्ध धर्म की मान्यताये नही अपितु हिन्दु धर्म का विरोध ही प्रमुख था। इसी के विरोध मे उनकी 22 प्रतिज्ञाये आज भी अम्बेदकर वादियों की प्रमुख क्रियाकलापों मे शामिल है । , जो स्वय ही बिरोधाभाषी है बुद्ध मन व वाणी तथा कर्म से भी किसी को दुख ना पहुचाने सत्य को आत्ममंथन से समझने , तथा ध्यान मार्ग से इस संसार को समझने का उपदेश देते है , सनातन धर्म में इसे योग दर्शन कहा जाता है । अम्बेदकर वादी कहते है कि मै ब्रह्मा विष्णु महेश को नही मांनुगा , पर जो धर्म इन्हें मानता है , उस धर्म की सुविधाओं का परिक्याग भी करना चाहिये ।पर सवाल यह है कि धर्म के आधार पर मिल रही सुविधाओं के परित्याग नही किया जाता इन सुविधाओं को अपना अधिकार क्यों माना जाता है ।यदि सम्राट अशोक इनके आदर्श है तो दबे -कुचले कैसे है , यदि दबे कुचले है तो तो अशोक के वंसज दबे कुचले कैसे हो सकते है यह बिचारणीय प्रश्न है । नेताओं की राजनीति भले ही चमकदार हो जाय पर इस राजनीति से समाज मे टूटन स्वभाविक ही है । इस टूटन के बिना राजनीति चल ही नही सकती ।