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अभी पुरौला का मामला शान्त भी नही हुवा, कि उत्तराखण्ड़ मे अल्मोड़ा जनपद मे भी महिलाओं के अल्पसंख्यक युवकों के साथ भागने की घटनाये सामने आई , पहाड़ की भोली भाली महिलाओं को नही मालूम कि वे जिसके साथ भाग रही है उनकी संस्कृति व परम्पराये क्या है इस्लाम मे विवाह एक कान्टैक्ट है , इस धर्म मे कभी भी तलाक बोलकर महिलाओं को अपने से पृथक कर सकते है , इस्लाम में ना को कोई भाई है ना ही वहिन , केवल सगी मां के बच्चे विवाह नही कर सकते , बल्कि सौतेले भाई वहिन , चचेरे भाई बहिन सब आपस मे विवाह कर सकते है एक पिता की अलग – अलग पत्नियों से पैदा हुई सन्तानें भी आपस में ब्याह कर सकती है । इस्लाम मे पुरुषों को असीमित अधिकार है, जबकि महिलाओं को शौहर के बच्चों का लालन पालन करना होता है वे दप्जनों बच्चे पैदा कर सकती है , सन्तान को अल्लाह की देन माना जाता है , यह समाज परिवारिक रिस्तेदारियों से जुड़ा है बाहर से इस समाज मे जाने वाली महिलाओं को वह हक नही मिलता जो परिवार की बेटी रही पत्नियों को मिलता है , परिवारिक सम्बन्ध होने के कारण तलाक के बाद उन्हें संरक्षण भी मिल जाता है, पर हिन्दु घर से मुस्लिम परिवार मे गई बेटी को कौन संरक्षण देगा , बड़े सम्पन्न घरों की बाते छोड दे तो गरीब घरो से भागी बेटियों का जीवन तो नर्क हो ही जायेगा ।
सम्भवत:हिन्दु समाज धर्म को ब्यापकता से नही समझता , वह केवल मन्दिरों में मुर्ति को प्रणाम करना , व अपनी मन्नत मांगना , ही धर्म समझता है , जबकि यह धर्म का एक छोटा हिस्सा है असली धर्म ईश्वर को अन्तर आत्मा मे बिठाकर सर्वकालिक सुख ,नीति पूर्वक जीवन जीने का आनन्द लेना है मोक्ष परम लक्ष्य है । धारयति इति धर्म , जो स्वयं व समाज के हित मे धारण करने योग्य आचरण है वही धर्म है , यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता, जहां नारियों का सम्मान होता है , देवताओं का वास भी वही होता है , सवाल यह है क्या भगोड़ी महिलाओं को पता है , कि वह जिसके साथ भाग रही है उसके समाज मे महिलाओं की क्या इज्जत है , जो लहसुन प्याज से भी परहेज करती है क्या होगा जब उनके सामने गौ मान्स भैस का मान्स परोसा जायेगा, तलाक व हलाला के नाम पर उन्हे कई मर्दो के साथ हमबिस्तर होना पडेगा ,। यदि जानकारी किये बिना महिलाये भाग रही है तो इन्हे कौन बचा सकता है ।
दरअसल सभी लोग ऐसे नही है पर महिलाओ को भगाने वाले ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय से होते है , इनको यहाँ लाने वाले उन्हे यह नही समझाते कि अल्पसंख्यक कारोबारियो को मर्यादा के साथ काम करना चाहिये , यही शिक्षा महिलाओं को भी दी जानी चाहिये जो दिनचर्या रहन शहन के अन्तर को नही जानती