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  नेशनल व सोसियल  मीड़िया मे पं धिरेन्द्र शास्त्री के लेकर एक बहस छिड़ी हुई है पं धिरेन्द्र शास्त्री चमत्कार के नाम पर अन्धविस्वास फैला रहे है समाज के एक तबके को  अंन्देशा है कि  इस प्रकार से तो सारे मानसिक विक्षिप्त  दरबारों मे ही जाने लगेंगे फिर  अस्पतालों मे कौन जायेगा,    भारत मे मजारो  व चर्च के अन्ध विस्वासों ने सनातन धर्म को कितना  बर्बाद कर दिया है , गरीब व भोले भले किस प्रकार इनके कुतक्र ंें फस रहे है , इस पर चर्चा नही होती   उत्तराखण्ड़ मे ही मजारो की एक श्रंखला कायम हो गई बै लाखो लोग इन मजारों व चर्चों में   अपना भूत भगाने जाते है  विस्वास  अन्ध विस्वास मे बहुत अन्तर है ,विस्वास मे सोचने समझने की शक्ति होती है पर अन्धविस्वास एक ऐसी महामारी है जिसमे सब कुछ  लुटाने के बाद  भी ब्यक्ति नही समझ पाता कि उसके साथ क्या हो रहा है ।  विस्वास व अन्ध विस्वास दोनो ही एक मानसिक अवस्था है ।  गणित की भाषा मे यदि समझा जाय तो ,सही उक्तर जानने  के लिये भी हम किसी अंक का आलम्बन करते है या,कल्पित करते है  उसकी सहायता से हम किसी संख्या का मान प्राप्त करके है   तब सही उत्तर प्राप्त होते है  सत्य प्राप्त करने के लिये जो विस्वास किया जाता है वह अन्ध विस्वास नही है, पर नकल करने के लिये जो विस्वास किया जाता हे वह परिक्षार्थी को रसातल मे भी पहुंचा सकता है ।

पं धिरेन्द्र शास्त्री भूतकाल मे घटिक बातों व मन मे चल रही बातों का संज्ञान लेते है देश मे कई लोग है जो ऐसा करते है ।  अवसादग्रस्थ ब्यक्ति  को यह अच्छा लगता है वह प्रतिक्रिया देता है यह मनोविज्ञान की एक अवस्था है पादरी मौलवी   लांम्वा  पुजारी , डग्गरिया  ज्योतिषी  ,बाबा कई  इस बिद्या का उपयोग करते है । पर तारगेट मे वे लोग  होते है ।   जो ज्यादा प्रसिद्ध होने के लिये मीड़िया का सहारा लेते है व प्रदर्शन करते है ।

सिद्धिया प्रदर्शन की वस्तु नही होती

कुल परम्परा से मिली सिद्धियां किसी प्रदर्शन की वस्तु नही होती , योग को लेकर बाबा रामदेव ने भी बक्तब्य दिये उनका भी मीड़िया ट्रायल हुवा , सोसियल मीड़िया मे उन्हे पाखंण्ड़ी कहा गया ,  आई एम ए तो आज भी आयुर्वेद पर सवाल उठाता है  यह तब होता है जब कि आयुर्वेद हजारो सालों से प्रचलन मे है , इसके बाद भी आई एम ए इसे चिकित्सा पद्वति नही मानता सवाल उठाते रहता है ।यही सवाल आज प. धिरेन्द्र शास्त्री पर भी है । अब उन्हे पूर्व से ही स्थापित ,व प्रचलित  मन्त्र शक्ति ,  को विज्ञान की कसौटी पर कसने की चुनौती मिल रही है । सुरसा ने मुह खोल दिया है मीड़िया ट्रायल होने लगा है। मीड़िया का उपयोग लाभ व हानि दोनों की ही संम्भावना प्रदान करता है ।  अब तो  षणयन्त्रकारी  कई तरह से षणयन्त्र कर  सकते है ।  तर्कशास्त्री तर्क से, बैज्ञानिक विज्ञान से , व श्रद्धालु श्रद्धा से समझना चाहते है कि सत्य क्या है  , इस सत्य को सावित करने मे पीड़िया लग जाती है कोर्ट कचहरी मे सबूत पर सबूत व मागे जाते है तारिखों पर तारीखे दी जाती है दशाब्दियों के बाद फैसले आते है । तब तक अभियुक्त की लांसे अटकी रहती है । मीड़िया ट्रायल की चपेट मे तो न्यायधीस भी आ जाय तो आश्चर्य कैसा आखिर मीड़िया दैसा जनमत तैयार कर देता है उसकी छाया न्याय पर पड़ जाय तो आश्चर्य कैसा ।

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