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21फरवरी को संसार भर के देश मातृभाषा दिवस के रूप मे मनाते है , सामान्यत: हम देखते है कि दुनिया में वे देश जो  मातृभाषा को  महत्व प्रदान करते है विकसित देशो की श्रेणि में है  मातृ भाषा मात्र भाषा  नही यह एक बेहतर समझ भी  पैदा करती है ।यदि मातृभाषा  मृत भाषा बन गई  तो हजारों सालो की  परम्परागत ज्ञान व समझ लुप्त हो जायेगी

महर्षि दयानन्द का मात्र भाषा दिन्दी के लिये योगदान

भारत मे राष्ट्रीय स्वाभिमान जगाने के लिये दिसम्बर, 1872 को स्वामीजी वैदिक मान्यताओं के प्रचारार्थ भारत की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता पहुंचे थे और वहां उन्होंनें अनेक सभाओं में व्याख्यान दिये। ऐसी ही एक सभा में स्वामी दयानन्द के संस्कृत भाषण का बंगला में अनुवाद गवर्नमेन्ट संस्कृत कालेज, कलकत्ता के उपाचार्य पं. महेशचन्द्र न्यायरत्न कर रहे थे। दुभाषिये वा अनुवादक का धर्म वक्ता के आशय को स्पष्ट करना होता है परन्तु श्री न्यायरत्न महाशय ने स्वामी जी के वक्तव्य को अनेक स्थानों पर व्याख्यान को अनुदित न कर अपनी उनसे विपरीत मान्यताओं को सम्मिलित कर वक्ता के आशय के विपरीत प्रकट किया जिससे व्याख्यान में उपस्थित संस्कृत कालेज के छात्रों ने उनका विरोघ किया। विरोध के कारण श्री न्यायरत्न बीच में ही सभा छोड़कर चले गये थे। प्रसिद्ध ब्रह्मसमाजी नेता श्री केशवचन्द्र सेन भी इस सभा में उपस्थित थे। बाद में इस घटना का विवेचन कर उन्होंने स्वामी जी को सुझाव दिया कि वह संस्कृत के स्थान पर लोकभाषा हिन्दी को अपनायें। गुण ग्राहक स्वाभाव वाले स्वामी दयानन्द जी ने तत्काल यह सुझाव स्वीकार कर लिया। यह दिन हिन्दी के इतिहास की एक प्रमुख घटना थी कि जब एक 48 वर्षीय गुजराती मातृभाषा के संस्कृत के अद्वितीय विद्वान ने हिन्दी को अपना लिया। ऐसा दूसरा उदाहरण इतिहास में अनुपलब्ध है। इसके बाद स्वामी दयानन्द जी ने जो प्रवचन किए उनमें वह हिन्दी का ही प्रयोग करने लगे।
थियोसोफिकल सोसासयटी की नेत्री मैडम बैलेवेटेस्की ने स्वामी दयानन्द से उनके ग्रन्थों के अंग्रेजी अनुवाद की अनुमति मांगी तो स्वामी दयानन्द जी ने 31 जुलाई 1879 को विस्तृत पत्र लिख कर उन्हें अनुवाद से हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं प्रगति में आने वाली बाधाओं से परिचित कराया। स्वामी जी ने लिखा कि अंग्रेजी अनुवाद सुलभ होने पर देश-विदेश में जो लोग उनके ग्रन्थों को समझने के लिए संस्कृत व हिन्दी का अध्ययन कर रहे हैं, वह समाप्त हो जायेगा। हिन्दी के इतिहास में शायद कोई विरला ही व्यक्ति होगा जिसने अपनी हिन्दी पुस्तकों का अनुवाद इसलिए नहीं होने दिया जिससे अनुदित पुस्तक के पाठक हिन्दी सीखने से विरत होकर हिन्दी प्रसार में बाधक हो सकते थे। महर्षि दयानन्द ने यह उद्घोषित किया कि संस्कृत भारत के सभी भाषाओं की जननी है हिन्दी संस्कृत के सर्वाधिक निकट है , अत: यदि भारत के लोग हिन्दी को राष्ट्रभाषा स्वीकार कर ले तो उन्हें व देश को एक दूसरे को समझने मे कठिनाई नही आयेगी वह हिन्दी के प्रचार प्रसार मे आजीवन लगे रहे ।

संसार मे वे देश जो अपनी मात्र भाषा मे काम करते है विकसित देश है जिन्होंने विदेशी भाषा को अपनाया वह पिछड़े देशों की श्रेणि मे है ।उदाहरण के लिये  यहां कुछ देशो का विवरण है जिन्होंने अपनी मौलिक व मातृ भाषा छोड़ दी

अफ्रिका महाद्वीप – 46 पिछडे देश
21 देश फ्रांसीसी में सीखते हैं।
18 देश अंग्रेज़ी में सीखते हैं।,
5 देश पुर्तगाली में सीखते हैं।,
2 देश स्पेनिश में सीखते हैं।,
उन देशों के लिए ये सारी परदेशी भाषाएँ हैं। उनपर शासन करने वालों की भाषाएँ.
इनमें से कितने देश आगे बढे हैं? सब जानते है बेहद गरीबी मे इनका जीवन बीत रहा है ।इनमे से लगभग सभी देश विज्ञान व तकनीति व समृद्धि मे अत्यधिक गरीब है ।दुनियां के वे देश जो अपनी मातृभाषा में काम करते है – जापान 2-युरोपीय देश

जापान का दुनिया मे परचम
जापान दुनिया की 6 भाषाओं से शोधपत्र (रिसर्च पेपर)का अनुवाद कर अपने गेश के लोगों रो सल्ते दरों पर उपलब्ध कराता है जिसमे
जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और डच भाषा शामिल है ,यह देश शोधपत्रों का जापानी में अनुवाद करवाता है। ,यहा री सरकार  मात्र 3 सप्ताह में इन शोध पत्रों को जापानी भाषा मे  प्रकाशित करती है।तथा अनुवाद छापकर जापानी विशेषज्ञों को मूल कीमत से भी सस्ते मूल्य पर बेचे जाते हैं. दुनिया में विशम भौगोलिक परिस्तिथिया होने के बाद भी जापान व युरोपीय देशों की उन्नति किसी से छुपी नही है

पाकिस्तान की हालत

वे देश जो जो जो दो राहे मे खड़े है पाकिस्तान  प्रमुख है , जो अभी तक अपमी मौलिकता के बजाय विदेशी अंग्रेजी भाषा व उर्दू को महत्व दे रहा है भारत की हालत भी बेहतर नही पर भारत में आंचलिक भाषाओ को भी महत्व दिया जा रहा है ,यही कारण है कि देश अपनी गति से आगे बढ रहा है  , महर्षि दयानन्द मे देश मे हिन्दी आन्दोलन चलाया था जो लाहौर मे भी लोकप्रिय हुवा पर कालीन्तर मे उर्दू ने पाकिस्तान मे हिन्दी का अस्तित्व समाप्त कर दिया ।पाकिस्तान आज भी असमंजस व गर्त  मे है यह जानकार आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान की अपनी भाषा क्या है  इस देश में आंचलिक भाषाओं के स्थान पर उर्दू थोप दी गई , यह आज भी पाकिस्तान में विवाद का  विषय है.। इस देश में सरकारी कामकाज + उच्च शिक्षा की भाषा  – अंग्रेजी है  संसद की भाषा + मिडिया की भाषा — उर्दू है घर की भाषा- पंजाबी, सिन्धी, बलोच आदि.है  1947 से पहले पाकिस्तान के किसी भी हिस्से की मुख्य भाषा उर्दू नहीं थी. बंग्लादेश बनने का मुख्य कारण बंगाली को हटा कर उर्दू लादना था। आज पाकिस्तान के हालत  चिन्ता जनक है .-

विश्व इतिहास में इजराईल का महत्व

विश्व इतिहास मे इजराइल की धमक इजरायल देश से कौन परिचित नही है चारो तरफ से ईस्लामिक देशों से लड़ कर यहुदियों ने इस देश का निर्माण किया है । द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1948 में विश्व भर में फैले यहूदियों को एक स्थान पर बसाने के लिए  यह देश बनाया गया। आज  इजराईल  की मुख्य राजभाषा हिब्रू है और सहयोगी भाषाएँ अँग्रेजी एवं अरबी हैं। अँग्रेजी और अरबी तो आज विश्व के अनेक देशों में बोली जाती हैं, पर हिब्रू ऐसी भाषा है जो दुनिया के नक़्शे से लगभग गायब ही हो गई थी। इसके बावजूद यदि आज वह जीवित है और एक देश की राजभाषा के प्रतिष्ठित पद पर आसीन है
दुनिया में प्रति व्यक्ति पेटेंट कराने वालों में इजरायलियों का स्थान पहला है.
इजरायल की जनसंख्या न्यूयॉर्क की आधी जनसंख्या के बराबर है. इजराइल का कुल क्षेत्रफल इतना है कि तीन इजराइल मिल कर भी राजस्थान जितना नहीं हो सकते.
इजरायल दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जो समूचा एंटी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम से लैस है. इजरायल के किसी भी हिस्से में रॉकेट दागने का मतलब है मौत. इजरायल की ओर जाने वाला हर मिसाइल रास्ते में ही दम तोड़ देता है.
इजरायल अपने जन्म से अब तक 7 बड़ी व अनेकों छोटी लड़ाइयां लड़ चुका है. जिसमें अधिकतम में उसने जीत हासिल की है. इजरायल दुनिया में जीडीपी के प्रतिशत के मामले में सर्वाधिक खर्च रक्षा क्षेत्र पर करता है
इजरायल के कृषि उत्पादों में 25 साल में सात गुणा बढ़ोतरी हुई है, जबकि पानी का इस्तेमाल जितना किया जाता था, उतना ही अब भी किया जा रहा है.
इजरायल अपनी जरुरत का 93 प्रतिशत खाद्य पदार्थ खुद पैदा करता है. खाद्यान्न के मामले में इजरायल लगभग आत्मनिर्भर है.

एक प्रसंग में क्यों भड़क गये महर्षी दयानन्द

हरिद्वार में एक बार व्याख्यान देते समय पंजाब के एक श्रद्धालु भक्त द्वारा स्वामीजी से उनकी पुस्तकों का उर्दू में अनुवाद कराने की प्रार्थना करने पर उन्होंने आवेश पूर्ण शब्दों में कहा था कि अनुवाद तो विदेशियों के लिए हुआ करता है। देवनागरी के अक्षर सरल होने से थोड़े ही दिनों में सीखे जा सकते हैं। हिन्दी भाषा भी सरल होने से आसानी से कुछ ही समय में सीखी जा सकती है। हिन्दी न जानने वाले एवं इसे सीखने का प्रयत्न न करने वालों से उन्होंने पूछा कि जो व्यक्ति इस देश में उत्पन्न होकर यहां की भाषा हिन्दी को सीखने में परिश्रम नहीं करता उससे और क्या आशा की जा सकती है?

महर्षि दयानन्द के हिन्दी आन्दोलन का अल्मोड़ा उत्तराखण्ड़ मे प्रभाव

यद्यपि अल्मोड़ा की आंचलिक भाषा कुमाऊनी थी किन्तु मुगल काल मे कत्यूरियों से चन्द वंशीय राजाओके सत्ता आने से राजभाषा संस्कृतनिष्ठ कुमाऊनी से ऊर्दूनिष्ट कुमाऊनी अस्तित्व मे आ गई , महर्षि दयानन्द के शिष्यों ने हिन्दी आन्दोलन को गांव – गांव तक पहुताने के लिये पहाड़ की बौद्धिक व राजनैतिक नगरी अल्मोड़ा को भी हिन्दी आन्दोलन का केन्द्र बनाया , सत्यदेव परिब्राजक को इसके लिये अल्मोड़ा भेजा गया उन्होंने सत्य साहित्य पुस्कालय की स्थापना कर हिन्दी आन्दोलन को आगे बढाया अल्मोड़ा मे हिन्दी साहित्यकारों की एक बड़ी श्रंखला अस्तित्व में आई ।

लोकभाषा कुमाऊनी

लोकभाषा कुमाऊनी में यद्यपि किसी पुरामे ग्रन्थ का जिग्र नही मिलता पर गौर्दा की रचनाये मौजूद है गौर्दा , बाद मे शिवानी व कई लोग सत्यव्रत परिब्राजक के हिन्दी आन्दोलन से प्रभावित व लाभान्वित हुवे । गौर्दा मे अपनी कई रचनाये कुमाऊनी मे लिखी ।

हिन्दी मे लिखी प्रेरक पुस्तक

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