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बहुत ही अचरज की बात है कि भारत सरकार व उनके नुमाइन्दों ने चिपकों आन्दोलन का गलत मतलब निकाल कर पहाड़ों की दुर्दशा कर ड़ाली ,चिपको आन्दोलन पहाड़ो के संसाधनों  को  पहाड़ के लोगों के हित में संरक्षित व उपयोग करने का आन्दोलन था । 1921में जब अंग्रेजों ने बनों से जनता के अधिकार छीने को अंग्रेजों को प्रचण्ड बिरोध का सामना करना पड़ा था । इस विरोध के चलते  लोंगों ने उत्तराखण्ड़ के जंगलों को आग के हवाले कर दिया था । किन्तु 1970 के दशक में जब उत्तराखण्ड़ में वन आन्दोलन  ने दस्तक दी तो उसके निहितार्थ स्पष्ठ  थे । वह आन्दोलन  संसाधनों का मैदानी क्षेत्रों की तरफ हो रहा दोहन के खिलाफ स्थानीय उत्पादक समुहों को  वन उत्पाद उपलब्ध कराने का आन्दोलन था। । देखते देखते यह वन बचाओं आन्दोलन  बन गया । इसके बाद पर्वतीय समाज की मुश्किले बढ गई 

वर्तमान में भारत सरकार तथा उत्तराखण्ड़ सरकार ने उच्च हिमालय तथा मध्य हिमालय में वन अधिनियम् 1980  के प्राविधानों के तहत  जिस प्रकार पेडो के कटान पर रोक लगा दी है उससे स्पष्ठ है कि उत्तराखण्ड़ के पर्वतीय क्षेत्रों में  मानवीय.गतिविधियां सिमित हो गई है ।  व जंगली जानवरों की गतिविधियां बढ गई है ।  इस बीच अचानक बाघों की संख्या में काफी इजाफा हो गया है । यह अब ये वाघ  लोगों को घरों मे ही निवाला बनाने लगे है ऐसे मे लोंगो के पास दो ही विकल्प है या तो बाघों को  जंगलों मे ही सिमित कर दिया जाय यदि वह नरभक्षी बन रहे है तो  उन्हें तुरन्त पकड़ा जाय  ,ग्रामीणों को उन्हें मारने का अधिकार दिया जाय जैसा कि ब्रिटिस सरकार में प्राप्त था , उत्तराखण्ड़ में  सभी लोंग बनवासी है क्योंकि यहां की जमीन का 70% भू -भाग सरकार द्वारा ही बन भूमि घोषित है। राज्य में आबादी के बीच में भी बन भूमि मौजूद है जो चकबन्दी में भी बाधक है, ।

  फिर से जरूरत है किसी जिमकार्वेट की

जिस प्रकार मानव व वन्य जीवों के बीच संघर्ष बढ रहा है , उसे देखते हुवे राज्य मे फिर से अंग्रेजो की वन नीति के मानवीय पक्ष पर काम करने की जरूरत है उन्होंने पर्वतीय समाज को वन्य जीवों को सुरक्षा की दृष्ठि से मारने के लिये ग्रामीण समाज मे आग्नेयास्त्रो  का लाईसैन्स देने की नीति बनाई । अब वर्तमान सरकार सुवर बन्दर , बाघ , भालू आदि जानवरों से अपने बचाव की अनुमति नही दे रही है सभी आग्नेयास्त्र शो पीस बनकर रह गये है खेती चौपट है

अब  महिलाओं व मासूमों को निवाला बना रहे गुलदार

हाल के दिनों में मीडिया मे कई  खबरों ने एकाएक संवेदनशील लोगो का ध्यान अपनी ओर खींचा है जिसमे पिथौरागढ के बेरीनाग मे मासूम को माँ के गोद से छीनकर गुलदार ने अपना निवाला बनाया , कल की ही बात है नैनी नैल्पड़ मे राम सिंह बोरा का  आठ वर्षीय पुत्र  घर के आंगन मे ही मार दिया । सल्ट में तो कई घटनायें हो चुकी है ।  अब फिर से किसी जिम कार्वेट की जरूरत है जो जानवर व मानवों के बीच में सन्तुलन का  पक्षधर हों ।

नैल्पड़ में घर में ही बच्चे पर हमले से लोग शक्ते में

  बार -बार गुलदारों द्वारा लोगो पर हमले , जानवरों द्वारा  फसलों का नुकसान आदि बहुत से मामले ऐसे है जो अब लोंगों को अन्दर ही  अन्दर उद्वेलित कर रहे है , । यदि समय रहते  सरकार कोई नीतिगत निर्णय नही लेती तों लोग या तो पलायन कर जाईगे या फिर सरकार को आक्रोश का सामना करना पडेगा , कई संगठनों में आन्दोलन की सुगबुगाहट है ।

मासूम का नैनी में ही पोस्टमास्ट्रम किया गया ,बन विभाग की टीम ने  मौके पर पहुच कर परिजनों को एक  लाख रुपये मुवावजा  दिया ,क्षेत्रीय विधायक मोहन सिंह मेहरा भी घटना स्थल पर पहुंचे , उ लो वा , उ प पा व , स्थानीय जनप्रतिनिधियों के दबाव पर अव वन  विभाग की  टीम ने पिजडा़ लगा दिया है ।

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