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अल्मोड़ा विवेकानन्द पर्वतीय कृर्षि अनुसंधान संस्थान के वार्षिक समारोह में मुख्य अतिथि पद्मा विभूषण भारतीय कृषि औद्योगिक परिषद (ICAR)के पूर्व महानिदेशक डॉ राजेंद्र सिंह परोदा ने कहा कि कि ग्लोबल वार्मिग से जहां कई क्षेत्रों में प्रभाव पड़ रहा है उससे कृर्षि क्षेत्र भी अछूता नही है , सेव की खेती ग्लोबल वार्मिक की वजह से उच्च स्थानों मे विस्थापित हो रही है इसके स्थान पर की वी लगाई जा रही है । की वी अच्छा उत्पादन दे रही है । भूमि की उर्वरा शक्ति को बढाने के लिये प्रयोगो की जरूरत है । यदि खेती लाभदायक होगी तो युवा खेती से जुडेंगे । एक सवाल के जबाब मे उन्होंने कहा कि बीजों को मौलिक स्वरूप को बनाये रखना एक चुनौती है मौलिक स्वरूप मे ही मौलिक गुण विद्यमान रहते है किन्तु जब बीजों में जैनरिक सुधार होता है , । तभी वह अच्छी फसल देते है । सुगन्धित व मौलिक बीजों को बचाने की जरूरत है। ये बीज ज्यादा मात्रा में नही है । उन्हें संरक्षित करना ही उपाय है । उन्होंने कहा कृषि को लाभकारी बनाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के निरंतर विकास की आवश्यकता है और इसके लिए भारत के कृषि क्षेत्र में कार्यरत बहुत सारे संस्थान अपने वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से खेती के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बना रहे हैं ,आज दुनिया में जहां खाद्यान्न एक बड़ा संकट है वहीं भारत में खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त है
अल्मोड़ा विवेकानन्द पर्वतीय कृर्षि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा लक्ष्मी कान्त ने कहा कि यह हमारे लिये गर्व की बात है कि आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त कृर्षि वैज्ञानिक डा . राजेन्द्र सिंह परोदा ने हमारा आतित्थ्य स्वीकार किया । पर्वतीय.कृर्षि के विकास मे विवेकानन्द कृर्षि अनुसंधान संस्थान दशाब्दियों से कार्य कर रहा है , संस्थान के वैज्ञानिकों ने कई उपलब्धियां हासिल की है जो सराहनीय है । इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे कृर्षि वैज्ञानिकों ने किसानो को विविध जानकारी दी , विविध प्रकार के स्टाल लगाये गये । लोगो द्वारा बीज व कृर्षि उपकरणों का क्रय विक्रय किया गया । तथा अतिथियों द्वारा लगाये गये स्टालों का निरिक्षण किया ।

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