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भारत मे भलेहि गांधी जी के प्रति हाल के वर्षो में राजनैतिक बयानबाजियां तेज हो रही हो ,पर दुनियां गांधी जी के महत्व को आज भी पूरी शिद्धत से महसूस करती है , यह ऐतिहासिक तत्थ्य किसी से छुपा नही है कि उन्नीसवीं शताब्दी में जहां दुनिया , राजनैतिक चेतना का विकास व नष्ल भेद के खिलाफ संघर्ष की शताब्दी रही वही भारत में यह स्वकन्त्रता आन्दोलन , जातिगत संक्रमण ,व छुवाछूत तथा सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष की शताब्दी थी , भारत में इस आन्दोलन का पुन: शूत्रपात महर्षी दयानन्द ने किया तो दक्षिण अफ्रिका में इसका श्रेय स्वामी श्रद्धानन्द की प्रेरणा व महात्मां गाधी के संघर्ष को दिया जाता है । स्वामी श्रद्धानन्द ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बैश्विक जनमत बनाने के लिये कई युवको को बिदेशों में भेजा था । गांधी जी जब दक्षिण अफ्रिका में नस्लभेद के खिलाफ आन्दोलन कर रहे थे, तब स्वामी श्रद्धानन्द भारत से उनकी बित्तीय मदद कर रहे थे । गांधी जी जब दक्षिण अफ्रिका से भारत आये तो उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी का रूख किया स्वामी श्रद्धानन्द दक्षिण अफ्रिका में गांधी जी द्वारा चलाये गये नस्लभेदी आन्दोलन से इतने प्रभावित हुवे कि उन्होंने गांधी जी को गुरुकुल कांगड़ी में महात्मा नाम से संम्बोधित किया । मोहनदास करमचन्द गांधी उसके बाद भारत में महात्मां गांधी के नाम से प्रसिद्ध हो गये । उस समय महर्षि दयानन्द के अनन्य भक्त गोपाल कृष्ण गोखले अखिल भारतीय काग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे , गोखले ने गांधी को भारतीय राजनीति में स्थापित कर दिया उसके बाद तो गांधी ने पीछे मुड़कर नही देखा ।

गांधी व श्रद्धानन्द मे मतभेद

गांधी भारत में सर्व संमाज के नेता बनना चाहते थे । जबकि स्वामी श्रद्धानन्द प्रगतिशील वैदिक धर्म को आगे रखकर आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे । स्वामी श्रद्धानन्द ने इलके लिये शुद्धि सभा बनाई थी , वह जनेऊ आन्दोलन के माध्यम से अस्पृष्य समाज को दाषता के मनोबिकारो से बाहर निकाल रहे थे , स्वामी श्रद्धानन्द के इस आन्दोलन का कांग्रेस को भरपूर लाभ मिला पर मुष्लिम समाज , के साथ ही रूढीवादी हिन्दु समाज भी स्वामी श्रद्धानन्द की शुद्धि सभा के खिलाफ था , । आर्य समाज का एक धड़ा स्वयं ही स्वामी जी के खिलाफ था स्वामी श्रद्धानन्द को इस धडे़ ने पंजाब आर्य प्रतिनिधि सभा से निस्कासित कर दिया था । इस उठापटक में गांधी ने सेकुलरिज्म की राह अपनाकर भारत की आजादी के आन्दोलन एक नई दिशा दी , किन्तु अन्तत: परिणाम बिभाजन के रूप में ही सामने आया । श्रद्धानन्द वेद व सनातन धर्म की धवजा के नीचे आजादी चाहते थे तो गांधी तिरंगे के नीचे। अन्तत: गांधी की बिचारधारा की जीत हुई जो समावेशी विचारधारा थी इसमे सभी पन्थ सम्प्रदाय एकजुट हुवे ।

, दुनिया उस समय कई बिचारधाराओं का अनुभव लेकर चल रही थी ।एक हिटलर की विचारधारा , दूसरी मार्क्स की विचारधारा तीसरी पोप की ईसाई विचारधारा चौथी ईस्लामिक बिचारधारा, व पांचवी सेकुलरिज्म की निचारधारा । गांधी सेकुलरिज्म के ध्वजवाहक बने , ।

यह सेकुलरिज्म दुनिया भर के लोगों को संवाद के नजदिक लाने व बिचार धाराओं के संक्रमण की विचारधारा है । महर्षि दयानन्द भी यही चाहते थे , अन्तर यह था कि वह वैदिक विज्ञान को आगे कर समावेसी समाज के पक्षधर थे । पर अभी वैदिक शिक्षाओं को धरातल में उतरनें में वक्त लगेगा , एक वैदिक वैज्ञानिक अग्निबृत नैष्ठिक के प्रयास नाकाफी है । खण्ड़न से पहले मण्ड़न जरूरी है। वे यही कर रहे है ।

फिरहाल गांधी जी के सेकुलरिज्म की विचारधारा को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मान्यता दी है विदेश मन्त्री जयशंकर प्रसाद 14 दिसम्बर को यू एन ओं में गाधी की मूर्ति का अनावरण करेगें

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