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जोशीमठ क्यो धंस रहा है अभी इसके कारणों का स्पष्ठ उल्लेख नही है किन्तु विशेषज्ञों के अनुसार इसके कई कारण है जिसमे एन टी पी सी की सुंरंग , बहुमंजिला होटल व रिजार्ट, सड़को का खुदान व चौड़ीकपण क्षेक्र मे आ रहे भु -कम्प पानी की उचित निकासू का अभाव सहित कई कारण है । मीड़िया रिपोर्टों के अनुसार सरकार लोगों को भू -धसाव क्षेत्रों निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर भेज रही है। फिलहाल जोशीमठ के आसपास सभी निर्माण गतिविधियों को रोक लगा दी गई है।कई इमारतों में दरारें काफी चौड़ी होने के बाद उन पर लाल निशान लगा दिए गए हैं। इन्हें ध्वस्त किया जा रहा है, लेकिन जोशीमठ के सम्बन्ध विशेषज्ञों का कहना है कि आपदा को रोकने के लिए ये कदम नाकाफी हैं। पहाडॉो को संनेगनशील घोषित किया जाना ताहिये खतरे जोशीमठ में ही नही कई पहाड़ी शहरों मे भी ब्याप्त है
मीड़िया रिपोर्टों के हवाले से कहा गया है कि इमीनेट हिमालयन क्राइसिस’ विषय पर भारतीय मजदबर संघ द्वारा एक गोलमेज सम्मेलन में प्रस्ताव पारित किया गया है कि हिमालय को संवेदनशील घोषित किया जाय, केवल जोशीमठ ही नही पहाडॉ के अन्य शहर भी भू धसाव की जद मे है ।मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों को अपर्याप्त कहा गया प्रस्ताव में कहा गया है कि जोशीमठ के धसमे से बड़ी संख्या में लोग विस्थापन हो रहा हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नैनीताल, मंसूरी और गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की स्थिति पैदा हो सकती हैं।उन्होंने सरकार से जमीन धंसने के मुद्दे को हल करने के लिए दीर्घकालिक उपायों पर विचार करने को कहा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि हिमालय को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करें। तबाही मचाने वाली सभी बड़ी परियोजनाओं को विनियमित करें।सम्मेलन में कहा गया कि यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड की क्षमता का विस्तृत विश्लेषण और अध्ययन किया जाना चाहिए। इन स्थानों पर आने वाले पर्यटकों की संख्या का हिसाब रखा जाए और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पर्यटकों की संख्या पर्यावरण पर असर न डाले।
इस विश्लेषण में यह भी कहा गया है कि चारधाम मार्ग के निर्माण के लिए जोशीमठ की तलहटी में पहाड़ को किस तरह से काटा गया था। कैसे बिना उचित हाइड्रोजियोलॉजिकल अध्ययन के एनटीपीसी ने पहाड़ के बीच में एक सुरंग खोद दी, जिससे यह पहाड़ नष्ट हो गया इसे जांच कर स्पष्ठ किया जाना चाहिये
जोशीमठ में यह भी देखा गया है कि ऊंचे-ऊंचे होटलों और भवनों के निर्माण के कारण स्वच्छता प्रभावित हुई है। इसके कारण जोशीमठ और ज्यादा अस्थिर और बोझिल हो गया है। उन्होंने कहा कि इन सबके कारण आज जोशीमठ के आसपास का पूरा इलाका धंस रहा है। इसे बचाने का कोई और तरीका नहींहै ।

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