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अल्मोड़ा, 04 जनवरी 2023 उत्तराखण्ड विकेन्द्रीकृत जलागम परियोजना (ग्राम्या), फेज-2 का आगमन धौलादेवी विकास खण्ड अंतर्गत चयनित 9 सूक्ष्म जलागम क्षेत्रों में आच्छादित 87 ग्राम पंचायतों व 197 राजस्व ग्रामों मंे इस आधार पर हुआ कि इसका अधिकांश भाग (92ः से भी अधिक) बारानी कृषि के अंतर्गत आता है। ऐसे मंे जो कृषि क्षेत्र पूरी तरह से वर्षाजल पर ही निर्भर हों उनमें किसानों की आय बढ़ाना एक चुनौती से कम नहीं था।
परियोजना का स्वरूप पूर्णतया विकेन्द्रीकृत होने के कारण स्थानीय कास्तकारों के साथ मिल कर उन्हें तकनीकी सहयोग देते हुए ग्लोबल वार्मिंग के कारण आ रहे मौसमी बदलावों और वर्षा चक्र के परिवर्तनों के संबंध में उनका मार्गदर्शन करते हुए उनकी आय में वृद्धि के रास्ते भी तलाशने थे। ऐसे मंे स्मार्ट कृषि की अवधारणा के अनुरूप उनके द्वारा उत्पादित स्थानीय पारम्परिक फसलों के उत्पादन में वृद्धि लाकर और बीजोत्पादन के लिए प्रेरित कर उन्हें बेहतर आय दिलाने के उद्देश्य को लेकर यह महत्वाकांक्षी प्रयोग आरंभ हुआ।
सहयोगी गैर-सरकारी संगठनों ने भी किसानों के प्रोत्साहन, प्रेरित करने एवं उनको प्रशिक्षित करने मंे सहयोग किया जिस हेतु अनेक कार्यशालाओं और प्रशिक्षणों के माध्यमसे स्थानीय कास्तकारों को प्रेरित एवं अभिमुखीकृत करने के बाद ग्राम पंचायत स्तर पर इच्छुक कृषक समूहों का गठन किया गया तथा बीजोत्पादन के लिए तैयार कुछ कृषकों को लेकर मई 2015 मंे जागनाथ कृषि बीज उत्पादक संघ, आरतोला का जन्म हुआ। उŸाराखण्ड राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्थान, देहरादून में कृषकों एवं उनकी कृषि भूमि का पंजीयन विधिवत करवाया गया था राज्य कृषि विभाग, अल्मोड़ा से इस फैडरेशन को पहला कृषि बीज विपणन लाईसेन्स प्राप्त हुआ। विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधानशाला द्वारा स्थानीय वातावरण के अनुकूल विकसित उच्च गुणवŸाा वाली पारम्परिक फसलांे जैसे- धान, गेहूूं मडुवा, रामदाना, गहत, भट्ट, तथा पंतनगर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा विकसित गेहॅॅू मसूर, सरसों, मक्का आदि की उन्नत प्रजातियों के ब्रीडर बीज काश्तकारों को उपलब्ध कराये गये।
बीज बुवाई के पश्चात् उŸाराखण्ड बीज प्रमाणीकरण संस्थान के वैज्ञानिकों एवं विषय विशेषज्ञों द्वारा कास्तकारों के बीज उत्पादन प्रक्षेत्रों का फसलों की विभिन्न अवस्थाओं पर दौरा एवं निरीक्षण किया गया तथा उत्पादित होने वाले बीजों का पूर्वानुमान करते हुए फसलों का पंजीयन किया गया। बीज उत्पादन के उपरान्त तराई एवं बीज विकास निगम, हल्दी (पंतनगर) से फैडरेशन द्वारा भाड़े पर लेकर बीज विधायन किया गया तथा विधायित बीज को रूद्रपुर स्थित बीज परीक्षण प्रयोगशाला में परीक्षण हेतु भेजा गया। इस पूरी प्रक्रिया के पश्चात बीज विक्रय हेतु राज्य कृषि विभाग सहित परियोजना के विभिन्न प्रभागों तथा राष्ट्रीय संस्थानों, आजीविका, हिमाद्री तथा अन्य गैर सरकारी संगठनों एवं स्वयं तराई बीज एवं विकास निगम द्वारा भी अपनी ही दरों पर फैडरेशन से बीज क्रय किया गया।
इस कार्यक्रम का आरंभ वर्ष 2015-16 में हुआ था तथा कास्तकारों को वर्ष 2016 से आर्थिक लाभ मिलना आरंभ हो गया। वर्ष 2016-17 में खरीफ तथा रबी फसलों की बिक्री से सकल आय रू0 85,008 रही तथा सकल प्रमाणित बीज उत्पादन 24.99 कु0 था। वहीं वर्ष 2017-18 में आय बढ़ कर रू0 8,61,873 रही तथा बीज उत्पादन 151.84 कु0 रहा, वर्ष 2018-19 में रू0 10,38,093 की आय हुई जो 173.42 कु0 के कुल उत्पादन से हुई थी। यह आंकड़ा वर्ष 2019-20 में बढ़ कर रू0 18,21,392 हो गई तथा उत्पादन भी अल 267.22 कु0 तक पहुंच गया था। वर्ष 2020-21 मंे खरीफ तथा रबी की फसलों से कुल आय रू0 18,12,777 थी तथा कोविड महामारी में जब आय के स्त्रोत नहीं बचे थे तब भी 265.16कु0 का बीज उत्पादन कास्तकारों को राहत पहुॅचाने वाला रहा। वर्ष 2021-22 में भी कोविड की दूसरी लहर के बावजूद किसानों ने 203.66 कु0 सकल उत्पादन किया तथा इससे फैडरेशन को रू0 14,07.321 की सकल आय प्राप्त हुई। वर्ष 2018-19 से जागनाथ कृषि बीज उत्पादक संघ को धौलादेवी ग्राम्यश्री स्वयŸा सहकारिता संघ, फल्याट के साथ संबद्ध किया गया था बीज का विपणन कार्य भी फल्याट स्थित एग्रीबिजनेस ग्रोथ सेन्टर के माध्यम से संचालित होने लगा।
इस कार्यक्रम ने जहॉ एक ओर कास्तकारों को बेहतर आय का एक नया आयाम दिखलाया वहीं अल्मोड़ा जनपद का यह क्षेत्र उन्नतशील कृषि बीजों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना एवं कास्तकारों का मनोबल भी बढ़ा है।

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