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अल्मोड़ा पद्म विभूषण स्व बी डी पाण्ड़े  स्मृति समारोह समिति द्वारा उत्तराखण्ड़ सेवा निधि में  पिछले वर्षों की भांति इस वर्ष भी संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया  , कार्यक्रम का संचालन करते हुवे , डा राजेन्द्र पाण्ड़े(राजन) ने संवाद कार्यक्रम के  महत्व पर प्रकाश डाला ,  दीप प्रज्वलन के साथ ही  कार्यक्रम का शुभारम्भ हुवा, तथा मन्चासीन अतिथियों  को समृति चिन्ह दिये गये । इस अवसर पर पूर्व कैनिनेट सचिव इन्दु कुमार पाण्ड़े अध्यक्षता कर रहे विधायक मनोज तिवारी , पलायन निवारण आयोग के सदस्य सुरेश सुयाल   सदस्य अनिल साही ,। निरन्जन पन्त  (पूर्व सी  ए जी भारत सरकार  ),  विवेकानन्द कृर्षी अनुसंधान के निदेशक लक्ष्मी कान्त , व जी बी पन्त पर्यावरण संस्थान के निदेशक डा  नौटियाल  प्रो जी एस रावत , आदि लोग उपस्थित रहे ।

कार्यक्रम के उद्देश्यों पर आधार भूत बक्तब्य देते हुवे  समिति के सदस्य पालिकाध्यक्ष प्रकाश चन्द्र जोशी ने कहा कि केवल अल्मोड़ा जनपद से ही हदारों लोग पला यन कर चुकें है ।यही  हालत सभी पर्वतीय जनपदों की है ।  पहाड़ों मे औद्योगिक  विकास  नही है ,केवल अव्मोड़ा से ही  17000 लोग अपने स्थाई आवास  छोड़ चुके  है । पलायन के पीछे शिक्षा स्वास्थ   रोजगार प्रमुख कारण है ।

इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य आयोदक पद्म श्री  ललित पाण्ड़े ने कहा कि , यह परम्परा वरिष्ट पत्रकार पी सी जोशी , सहित कई वोगों के सुझाव पर 2009 मे पहली बार  जन सहयोग से संवाद आयोजित हुवा । इन संवाद  में उठाये गये बिन्दुओं पर कुछ ना कुछ कार्यवाही होनी चाहिये । जब कार्यवाही नही होती तो प्रांसगिकता पर सवाल उठते है ।पर जब सब लोग एकत्रित होते है तो विचार विमर्श अवश्य होते है ।  पलायन एक बड़ी समस्या है । ललित पाण्ड़े ने 1914 की एक  चिट्ठी का जिग्र करते हुवे 1914 मे जब भोलादत्त पाण्ड़े जापान गये तो उन पर विवाद हुवा उन्होने बनारस जाकर बिदेश जाने पर प्रायश्चित किया ।जब विश्व युद्ध   हुवा तब फौज विदेश  चली गई फिर इकमे वोगों का वहिष्कार संभव नही था आज सैकड़ों लोग बिदेशों में है ।  जब गाव मे जमीन खेकी सामाजिक स्टेटस ही नही है को लोग गांव मे क्या करेंगे । इस लमय दो पलायन कर चुके है , वे ही प्रतिवेदन दे रहे है ।  किन्तु जो पहाड़ मे रह रहे है । उनके कष्ट समझमे की जरूरत है । इस समय अल्मोड़ा से पढे  नवयुवक विश्वविद्यालय  मे नही पढ रहे है अधिकांश मबानगरों मे पढने चली गई बै गांव के बच्चे  नगर में आ रहे है । उन्होंने कहा कि पहले यह तय होना चाहिये कि  वह पहाड़ों मे क्या करें , तिकित्सक  तक यहां नही रहना चाहते , उन्होंमे कहा कि खुशी से  रहना व मजबूरी में रहना अलग -अलग बात है । पर्वतीय पहाड़ों मे नही रहना ताहते है जबकि बिदेशी यहां खुश है ।

जी बी पन्त पर्यावरण  संस्थान  के निदेशक  सुनील  नौटियाल ने पलायन पर बोलते हुवे कहा पलायन एक स्वभाविक प्रकृिया है ।  युवाओं को रोजगार के लिये जाना ही है पर रर जो सेवानिबृत है वे लौटकर नही आ रहे है । उन्होंने कहा कि पलायन मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण हो रहा है । हिमाचल से कोई पलायन नही है क्योकि वहा का सेव काफी पौपुलर हो रहा है ।

विवेकानन्द पर्वतीय कृर्षि अनुसंधान संस्थान के निदेशक ड़ा लक्ष्मीकान्त ने कहा कि यह जानना जरूरी है  लोग जाना  क्यों चाहते है । उन्होंने कहा कि महंगी शिक्षा व लम्बे समय तक पढने के बाद कोई चिकित्सक अभावग्रस्थ क्षेत्रों में क्यो जायेगा ।उन्होने ने कहा कि बाहरी लोग बड़ी संख्या मे पहाड़ो मे आ रहे है पहाड़ी पहाड़ छोड रहे है  जब तक रोजगार के अवसर नही होंगे तब तक पलायन होगा । छोटी जोत के किसानों के लिये बी पी के एस काम कर रहा है ।कौरोना के बाद  सोच बदली है पारम्परिक अनाजों की मांग बढी है । पहाड़ी अनाजों की मांग ज्यादा है । बहुत सी जड़ी बूटिया हो सकती है । 86% भू भाग पर्वतीय है पर  नदिया बह रही है पर  सिचाई उपलब्ध नही है । हजारो रूपये मूल्य की जड़ी बूटिया उगाई जा सकती है ।

पलायन आयोग के सदस्य सुरेश सुयाल ने कहा कि पलायन आयोग सुझाव व निवारण के लिये काम कर रहे है  इसके लिये आयोग ने एक क्रियान्वयन समिति बनाई है । सरकार में कुछ लोग इस पर सोच रहे है । जो भटक – भटक कर पांच दस हजार  की नौकरी कर रहे है उनको रोजगार मिलना चाहिये । गिरिराज साह के उत्तराखण्ड़ शोध संस्थान के बाद उत्तराखण्ड सेवा निधि की पहल है । उन्होंने कहा कि पार्टी जरूरी है पर पार्ट नही बनना चाहिये । कार्य संस्कृति के ह्रास के कारण समस्याये पैदा हो गई है । गाव मे  कोआपरेटिव बनाकर गांव का आर्थिक केन्द्र बनाना जरूरी है ।  श्रमजीवी का सम्मान होगा तो लोग काम के लिये प्रेरित होंगे ।

सभा को सम्बोधित करते हुवे प्रो जी एस रावत मे कहा । कि पहाड़ मे सबसे उत्तम क्वालिटी का खड़िया पत्थर उत्तराखण्ड़ मे मिलता है शुन्य तकनीकि पर आधारित यह कार्य भी यहां नही हो रहा है , ब्यावसायिक शिक्षा से ही पहाड़ का हित होगा , मैग्मेसाईड यहा प्रचुर है पर हम यहा ईट तक नही बना रहे । चीड़ को पहाड़ का बरदान व अभिशाप कहे जाने वाले चीड़ पर आधारित उद्योग लगाये जा सकते है ।चायना मे सरकार ने जंगल गाव को दिये है । हमे ऐसी शिक्षा देनी चाहिये जिससे युवा गांव में आ सके । जल की कमी भी भविष्य के लिये चिन्ता की बात है 393नदियां उत्तराखण्ड़ मे सूखने के कगार पर है। कोसी मे 1993 मे 750 लीटर प्रतिलेकिण्ड पानी का बहाव था । अब 50 लीटर रह गया है ।

पलायन आयोग के सदस्य अनिल शाही ने कहा पलायन अभाव व प्रभाव में हो रहा है , नह जो दस हजार की नौकरी कर रहा है उसके लिये सोचने की आवश्यकता है । अब गाय भैस पालने वाले की प्रतिष्ठा नही है इस कारण से भी पलायन है । कोरोना के बाद लोगो के मन मे यह विचार आ रहा है कि सुरक्षित ठिराना पहाड़ मे ही है । जो लोग काम करना चाहते है उन्हे कर्ज नही मिलता । विभागीय अधिकारी काम लटकाने की कार्यवाही करते है ।

उ प पा नेता पी सी तिवारी ने कहा कि 1970 के दशक में जब कच्चा माल बाहर भेजने का बिरोध किया ।तब कहा गया कि हमें पूंजी चाहिये पूंजीपति कभी भी विकास नही करते बल्कि श्रम के लाभ मे हिस्सा ढूढते है ।

कैग के पूर्व सहायक महालेखाकार निरंन्जन पन्त ने कहा कि देश विदेश मे बड़े -बड़े पदो पर काम करने के बाद बी डी पाण्ड़े दुरगम स्थल पर रहे । उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण काल मेयह प्रबृति बनी कि पहाड ही सुरक्षित है । उन्होने कहा कि पर्यावरण व ग्रामीण निकास एक दूसरे पर निर्भर है , सत्ताओं का पंचायती राज ग्रामीण विकास मे विकेन्दीकरण जरूरी है राज्य बनने के बाद सरकार व दनता के बीच दूरी बढी है । कुछ साल पहले रेन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच मे समझौता हुवा था कि दोनों का एकीकरण किया जाय, महिलाये व शिल्पकार वर्ग ग्रामीण समाज की धूरी है इन्ही को मूल केन्द्र मे लाना होगा ।नैट की कनैक्टविटी नही है ।राजकीय विद्यालयो मे छात्रों की संख्या कम हो रही है । स्वगीय बी डी पाण्ड़े दिल्ली से अल्मोड़ा पढने के लिये आये ।ग्राम विकास की योजनाओका लेखा जोखा निृमित नही है । मुक्त विश्वबिद्यालय ढांताागत बिरास मे काम कर सकता है , राज्य मे ग्राम विकास की शक्तियां ग्पाम पास नही पास नही

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