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इंडो-नेपाल रिलेशन्स एंड उत्तराखंड इंडिया:शेयर्ड हिस्ट्री एंड कल्चर’ विषयक तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय सेमिनार का हुआ समापन

सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय,अल्मोड़ा के और सेवा इंटरनेशनल-अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद (नेपाल अध्ययन केंद्र, नई दिल्ली) के संयुक्त तत्वावधान में ‘इंडो-नेपाल रिलेशन्स एंड उत्तराखंड इंडिया:शेयर्ड हिस्ट्री एंड कल्चर’ विषयक तीन दिवसीय सेमिनार के तीसरे दिन भारत-नेपाल के समाज एवं संस्कृति पर विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में देशी-विदेशी शोधकों ने शोध पत्रों का वाचन किया।
प्रथम सत्र में डॉ दनी राम योगी ने अध्यक्षता की और फोकलोर, फोक प्रैक्टिस एंड ट्रेडिशन में विद्वानों ने पत्र पढ़े। डॉ. दिव्येश्वरी जोशी ने मानस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान शीर्षक से शोध पढ़ते हुए नेपाल और भारत के सांस्कृतिक समानता की स्थितियों को प्रकट किया। रिसर्चर देबकी कुमारी शाह ने कल्चरल आस्पेक्ट ऑफ छौ पड़ी प्रैक्टिस एंड इट्स इफ़ेक्ट न वीमेन हेल्थ के माध्यम से विश्व में माहवारी के दिनों महिलाओं की दयनीय स्थिति और उसके उन्मूलन के प्रयासों को प्रकट किया। श्री पद्मराज जोशी नेपाल के सेदायी जोशी-अतीत से वर्तमान तक, डॉ.भुवनेश्वर पनेरू ने लोकल फ्लेवर इन डोटेली देउदा सांग विषय पर शोध पत्र पढ़े।

समापन सत्र में अध्यक्षता प्रो राजेश खरात (संकायाध्यक्ष, मुम्बई विश्वविद्यालय), बीज वक्ता प्रो संगीता थपलियाल (जे.एन.यू.), प्रो.नरेंद्र सिंह भंडारी (कुलपति, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय,अल्मोड़ा), श्री सुनील आम्बेकर, श्री श्याम परांडे मंच पर बतौर अतिथि विराजमान रहे।
बीज वक्ता प्रो संगीता थपलियाल (जे एन यू) ने भारत-नेपाल के बीच संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने की बात कही। नेपाल और भारत के बीच आज भी एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता है। दोनों ही एक-दूसरे के सामाजिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक संबंधों में साझा रहे हैं। मीडिया बंधु एक-दूसरे के बीच समभाव बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
एसएसजे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो नरेंद्र सिंह भंडारी ने कहा कि सोबन सिंह जीना और नेपाल विश्वविद्यालय आपस में सांस्कृतिक विश्ववकोश बना सकते हैं। हमारे विश्वविद्यालय का सहयोग है। भारत-नेपाल के बीच रोटी-बेटी के संबंध को नए रूप में समझने-गढ़ने की आवश्यकता है। शोधार्थियों को भारत-,नेपाल के बीच संबंधों, उनके बीच सदियों से चल रही साझा संस्कृति, इतिहास,समाज,कला आदिपर कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने नेपाल अध्ययन केंद्र, नई दिल्ली और सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के प्रयासों से भारत नेपाल के बीच इस अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के लिए बधाई दी।
श्री सुनील आम्बेकर (अखिल प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय सेवक संघ), ने कहा कि भारत की संस्कृति विश्ववभर में आज भी अपनी छाप छोड़ रही है। हमें वेदांत की दृष्टि मिली है। अपना मन विशाल करके देखें।
अध्यक्षता करते हुए प्रो राजेश खरात ने कहा कि भारत-नेपाल के बीच गहरा संबंध हैं दोनों ही राष्ट्र सीमा तक न रहें बल्कि इधर उधर भी जाएं। और कहा कि हमें सांस्कृतिक धरोहरों की नींव मज़बूत करनी होगी। सांस्कृतिक -एंथ्रोपोलॉजी पक्ष को लेकर काम करने की जरूरत है।
समापन अवसर पर अतिथि रूप में समापन वक्तव्य देते हुए श्री श्याम परांडे (सचिव,ए.आर. एस.पी.) ने कहा कि सेमिनार में प्रस्तुत हुए पेपर तीन महीने में प्रकाशित होने के लिए
इन तीन दिवसीय सेमिनार में डॉ लवी त्यागी (अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद (नेपाल अध्ययन केंद्र), नई दिल्ली) ने सफल संचालन किया और प्रो महेश शर्मा ने सभी का आभार जताया।
इस अवसर पर प्रो जगत सिंह बिष्ट (निदेशक,शोध एवं प्रसार), प्रो प्रवीण बिष्ट, प्रो अनिल जोशी (संकायाध्यक्ष, कला), डॉ देवेंद्र सिंह बिष्ट (विशेष कार्याधिकारी),प्रो विद्याधर सिंह नेगी (सेमिनार आयोजक सचिव),प्रो. नीरज तिवारी,डॉ चंद्र प्रकाश फूलोरिया, डॉ लवी त्यागी (अंतराष्ट्रीय सहयोग परिषद (नेपाल अध्ययन केंद्र), नई दिल्ली), प्रो एम.पी जोशी(प्रख्यात पुरातत्त्वविद), प्रो इला साह (अधिष्ठाता छात्र कल्याण), प्रो निर्मला पंत,श्री प्रेम कुमार भट्टराई, प्रो.के.सी.जोशी (संकायाध्यक्ष, वाणिज्य एवं प्रबंधन), डॉ राकेश साह, प्रो.एम.एम.जोशी, डॉ भोजराज गौतम, डॉ. रमेश खत्री, डॉ. स्वेता सिंह, डॉ. रीतू चौधरी, श्री राजेन्द्र सिंह रावल, प्रो. माधव पोखरेल, प्रो. महेश शर्मा (दिल्ही), प्रो. मदन मोहन जोशी (uou), डॉ. सुरेश टम्टा, डॉ. वासुदेव पांडे, प्रो संगीता थपलियाल, पंकज जोशी, डॉ नवीन भट्ट,डॉ ललित जोशी, डॉ रवींद्र पाठक, वासुदेवा बिष्ट, मोहन प्रसाद बिष्ट, डॉ निहार नायक, डॉ. शैलजा पोखरेल, डॉ गोकुल देवपा, प्रो संगीता थपलियाल,डॉ हरक बहादुर शाही, नारायणी भट्ट, डॉ भोजराज गौतम, श्री लियाकत अली, डॉ बिदुर चालीशे, डॉ दनीराम योगी (काठमांडू), राजेन्द्र सिंह रावल (महाकाली साहित्य संगम, कंचनपुर), जीवन भट्ट मौजूद रहे।

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