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ऋषिकेश उत्तराखंड को चार धामों से जोड़ने वाली , सन्तों की तपस्या स्थली महात्माओं का आवास , यह नगर सनातन हिंदू धर्म के लोगों का मार्गदर्शन करता हैं,। किंतु जिस ऋषिकेश में देश व विदेश के लोग अपने कल्याण , दुख दारिद्रय रोग शोक निवारण व मोक्ष और कल्याण की कामना को लेकर के आते हैं, वहीं के नजदीक एक गांव में जिस प्रकार से अनेकों घरों में मजारें बना दी गई है, यह इस बात का संकेत है कि जिस प्रकार कश्मीर मे बुल्ले साह आदि इस्लामिक पीर फरीरों ने अल्लाह के प्रति आस्था जगा-जगा कर सनातन के मानने वालो को ईश्लामिक संस्कारों मे दिक्षित किया ,। वही कहानी अब ऋषिकेश में भी दुहराई जा रही है ,। कश्मीर का ईल्लामीकरण ही नही हुवा अपितु आज ईस्लाम कश्मीर मे आतंक का प्रयाय बन गया है । यह अपने आप में सोचने का विषय है, पहाड़ों में भूत प्रेत देवता मसान आदि का चलन हमेशा से ही रहा है । अब इस मनोरोग का उपचार करने पीर बाबा, काला जादू के नाम पर लोगों के दिमाग मे भ्रान्ति डाल-डाल कर उन्हे मजार बनाने के लिये प्रेरित किया जाता रहा है , ।
अपने शारिरिक व मानसिक ब्यथाओं से संसार मे कौन ब्यक्ति अछूता है , बहुत से लोग मानसिक अवसाद से ग्रसित हो जाते हैं ,पहाड़ो में इस प्रकार के अवसाद के रोगों से बचने के लिये देव डांगर नचाने की प्रथा है , कहा जाता है कि यह गुरु गोरखनाथ की परम्परा है , पर अब इस जागर प्रथा में अत्यधिक ब्यय होने लगा है , डंगरियों मे शराब पीने की लत अत्यधिक दाम व दक्षिणा का चलन , लोगों को मानसिक अवसाद आदि रोगो के उपचार के लिये अब इन पीर बाबाओ के पास जाने के लिये प्रेरित कर रहा है । कुरान की आयतों से झाड़ा लगवाने , ताबीज आदि पहनाने जमजम का पानी पिलाने , लोगों को नकली मजारो की तरफ आकर्षित कर ईस्लामीकरण का नया रास्ता बनाने इसके माध्यम से धन कमाने की ये मजारें दुकानों की तरह काम करने लगी है ,।
इसी श्रृंखला में ऋषिकेश के नजदीक एक गांव में बहुतायत संख्या में मजारें बना दी गई है ।, यद्यपि मन से अभी यह सभी लोग हिंदू ही है ,।इन्होंने सूफी मत के अनुसार भलेहि मजारें बना ली हों , पर अभी इस्लाम ग्रहण नही किया पर यह सोचनीय है कि गंगा का जल छोडकर ये लोग जमजम के पानी मे अपनी समस्याओं का समाधान देखने लगे है ,। हरिद्वार जनपद में इस्लामिक शिक्षा के बिश्वब्यापी केन्द्रों में देवबन्दी मदरसा, ईस्लामिक जगत मे प्रसिद्ध है , । पर देवबन्दी मदरसा मजारों का प्रचार नही करता यह कार्य पिरान कलियर शरीफ की मदरसा संस्कृति से प्रेरित हो सकता है जो शोध का विषय है ।लोग अपनी समस्याओं के समाधान के लिये मदरसा के मौलवियों की प्रेरणा से ये मजारे बनवा कर भूत -प्रेत आदि मानसिक रोगों का उपचार का ढोंग कर रहे ।
आश्चर्य की बात है कि भारत जैसे देश में तमाम कथावाचक, महामण्डलेश्वर ,, जगतगुरु शंकराचार्य , जैसे कई ख्याति प्राप्त लोंग धार्मिक संगठन मौजूद है , फिर भी देश की तीर्थ नगरी में सनातन धर्म की शिक्षा दीक्षा का लाभ लेने के बजाय लोग मजारों मे क्यों जा रहे है? और इतनी मजारें कैसे बन क्यों बन गई यह सोध का विषय है ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह हैं की इन मजारों में किसी भी पीर बाबा के कोई अवशेष नहीं है। यह मजारे नही मजारों की प्रतिकृति है जो ईस्लामिक दर्शन के अनुसार भी गलत है ,। बताया जा रहा है कि इन आकृतियों के पास कुरान की आयतें लिखी गई है तो साथ में हिन्दु देवताओं के नाम के साथ – साथ स्थानीय लोक देवताओं के चित्र भी,लगाये गये है , इस नई संस्कृति को देखकर हिंदुओं तथा मुसलमान का माथा ठनक रहा है। पर मजारों के मौलवी जरूर खुश है क्योंकि उनका धंन्धा फल -फूल रहा है ।