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इन दिनों देश में एक नया विमर्श चल रहा है इस विमर्श के अनुसार समाज का एक तबका मिथक व इतिहास मे घटित घटनाओं के लिए वर्तमान समाज को दोषी ठहराने का कार्य कर रहा है। कुछ नये पढ़े लिखे लोगों का कहना है कि वह महिषासुर नामक राक्षस के वंशज है उनके पूर्वज नाग महिषासुर किरात, रावण, सुपर्नखा आदि थे, आश्चर्य यह है कि इन्होंने जिन्न भूत पिचास , मसा़ण ,को अपना पूर्वज घोषित नही किया है । देर सबेर यह घोषणा भी हो जायेगी ।

यदि मान लिया जाय कि धार्मिक ग्रम्थों के आधार पर ये नाग व राक्षस वंशी थे ,तब यह भी तत्थ्य है कि राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य भी आर्य ब्राह्मण ही थे , ।उनका मत है कि देवताओं द्वारा उनके समाज पर जो आक्रमण किए गए यह उसका बदला लेंगे और उन्हें दंडित करेंगे इस विचार में नया क्या है ,इससे तो धार्मिक साहित्य व पुराण भरे पड़े है । नया केवस इतना है कि कुछ वोग अपने समाज को ृह बता रहे बै कि वह नरभक्षी राक्षसों की सन्ताने है ।

संविधान ने सब को पढ़ने का अधिकार दिया है। कोई कुछ भी पढ या लिख सकता है । पर सतसाहित्य को पढना आसान नही है, अक्षर ज्ञान व शब्दार्थ जान लेना भी ज्ञान नही है , ज्ञान का अर्थ है , परिष्कृत अभिब्यक्ति ! संविधान ने अभिब्यक्ति की आजादी दी है पर देश तोड़ने गृहयुग्ध भड़काने , अशान्ति फैलाने का अधिकार संविधान में नही है । पठन-पाठन के अधिकार ने समाज में दो प्रकार के चिंतन पैदा किये है एक सकारात्मक , दूसरा नकारात्मक ,जिसमें से एक सकारात्मक विचार यह है कि समाज को सभ्य और सुसंस्कृत होना चाहिए और दूसरा विचार यह है कि उन्हें सभ्य समाज से युद्ध करना चाहिये हर मोड़ पर उन्हें नीचा दिखाना चाहिये रामायण का प्रमुख पात्र रावण भी यही करता था ।

इस वरितमान विमर्श में स्थाई रोजगार की बातें कम ही है , केवल सरकारी रोजगार की बाते अधिक है यह बीत कहू जा रही है कि सभी ऊँचे पदों पर ब्राह्मणों कब्जा है पर यह भी सत्य है कि यह बैश्विक सत्य है । भारत में परम्परागत रोजगारो के प्रति घृणा का प्रसार किया जा रहा है । बड़ी संख्या में लोग परम्परागत रोजगार छोड चुके है ।समाज का एक बड़ा तबका अपने परंपरागत कार्यों को छोड़कर सरकारी कर्मचारी या फैक्ट्रियों में मजदूर बनना पसन्द कर रहा है ,। उद्योगो को स्किल्ड़ मजदूरों की जरूरत है, पर समाज का एक बड़् समुह चाहता है कि वह आरक्षण के बलबूते रोजगार प्राप्त करें । इस विमर्श में अनारक्षित वर्ग को तारगेट किया जा रहा है । यदि परंपरागत कार्यों को छोड़कर जिसमे , कारीगरी , शिल्प , मोचर मैकेनिक , नाई धोवी , आदि आदि कार्यों के प्रति उन्ही के समाज के वोग घ णा फैला रहे है तो इन रार्यो ॆ रो मुसलमीन कर रहे है । इन दिनों परम्परागत गांवों मे एक कुशल श्रमिक बनने की चाह कोई नही रखता है ।

हर कोई ,विश्व के कई प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रबंधक के रूप में सेवा करना चाहता है इन संस्थानों अनारक्षित वर्ग ने अपना परचम लहराया है, तो इस वर्ग ने भी अपने परंपरागत कार्यों को छोड़ा है ।इन दिनों समाज का हर वर्ग ऐसा ही कर रहा हैं ।उन्होंने अपने परम्परागत हुनर को आगे बढ़ाने के बजाय दूसरों के कार्यों को अपनाकर भले ही अल्प समय के लिये अपनी आर्थिक स्थिति ठीक कर ली हो पर इससे उनकी पीढ़ियों को भी रोजगार मिलेगा इसकी गारन्टी नही है ,। सरकारी महकमें के तीन प्रतिशत पदों पर खानदानी चौधरी बनने के लिये लोग परम्परागत आरक्षण की वकालत तथा आर्थिक आरक्षण का बिरोध कर रहे है ,

, भारत में एक बड़ा तबका कह रहा है कि पांच हजार साल पहले आर्यों ने उन पर आक्रमण किया और उन्हें अपना दास बनाया। यह किस लेखक व पुस्तक ने उम्हे बताया इसका कोई प्राचीन स्रोत नही है केवल कयास व मिथक ही है । ।सवाल यह है कि गुलामों की मन्ड़िया सजाने वाले , हरम में हजारों नारियों को कैदी व महारानी की तरह रखने वाले शासकों पर यह कुछ नही करते

वहीं वर्तमान समय में इतिहास पर बड़ी चर्चाये चल रहील है । भरे पेट वालों को रोजगार का चिंता नहीं है बल्कि चिन्ता यह है कि गड़े मुर्दे रैसे उखाड़े जाय ।यह सोचा जा रहा है की इतिहास में उनके साथ जो कुछ हुआ और जिसने किया अब उसका प्रतिकार किया जाएगा और उनको भी उतना ही दंड दिया जाएगा जितना उनके पूर्वजों को मिला । पूर्वजों के साथ क्या हुवा किसने किया यह अचकलें है , यह ग्रह युद्ध पैदा करने की एक योजना है। जिस पर सरकार को तत्काल संज्ञान लेना चाहिए युद्ध से कभी भी किसी भी समाज का भला नहीं होता बल्कि मेल मिलाप आपसी सौहार्द से समाज निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है । रोजगार की नीतियां देश की आर्थिक समृद्धि को बढ़ाती है, भारत में रोजगार की दृष्टि से ही जातियां कल्पित की गई ।विदेशी आक्रमणकारियों के कारण सबसे बड़ा प्रहार लोगों के रोजगार पर ही हुआ और परंपरागत रोजगार शोषण के आधार बन गए ,।जिन व्यवसाय में शोषण हुआ उसमें कृषि पशुपालन तकनीकी शिल्फ आदि प्रमुख है। देश में आक्रमणकारियों के दौर में जो बड़े-बड़े किले बने हुए हैं भव्य इमारतें बनाई गई है वे सब परम्परागत जातिगत मजदूरों ने ही निर्मित की है?अब इन इमारतों को बनाने वालों का यदि शोषण हुआ तो इसके लिए तत्कालिक सरकारों को जिम्मेदार मानने के बजाय किसी खास जाति को जिम्मेदार मामना बड़ी भूल है ।

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