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नैनीताल।उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने विधान सभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों के मामले पर सुनवाई  करते हुवे  याचिका कर्ताओं की संसोधित याचिका को स्वीकार कर लिया ।मामले को सुनने के बाद वरिष्ठ न्यायमूर्ती मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओ की संसोधन प्रार्थनापत्र को स्वीकार करते हुए विधान सभा सचिवालय से इस पर दो सप्ताह में अतिरिक्त जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 31 मार्च की तिथि नियत की है।आज निष्काषित कर्मचारियों की तरफ से कोर्ट में विधान सभा की जाँच रिपोर्ट को याचिका में संसोधन प्राथर्ना पत्र के माध्यम से चुनोती दी गयी। जिसमे कहा गया है कि 2001 से 2015 तक की नियुक्तियां भी अवैध है परंतू 2016 से 2021 तक हुई नियुक्तियों की जाँच की गई जो अवैध पाई गई । इसी आधार पर उन्हें निष्काषित किया गया है। याचिकाकर्ताओ का कहना है कि जाँच के बाद उन्हें सुनवाई का मौका नही दिया गया। उनके साथ भेदभाव किया गया है। यह प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है। मामले के अनुसार बर्खास्तगी के आदेश को बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ठ , कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ ने चुनोती दी है ।
याचिकाओ में कहा गया है कि विधान सभा अध्यक्ष के द्वारा लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28 ,व 29 सितम्बर 2022 को समाप्त कर दी । बर्खास्तगी आदेश मे उन्हें किस आधार पर किस कारण की वजह से हटाया गया कहीं इसका उल्लेख नही किया गया न ही उन्हें सुना गया ।जबकि उनके द्वारा सचिवालय में नियमित कर्मचारियों की भांति कार्य किया है। एक साथ इतने कर्मचारियों को बर्खास्त करना लोकहित नही है। यह आदेश विधि विरुद्ध है। विधान सभा सचिवालय में 396 पदों पर बैक डोर नियुक्तियां 2001 से 2015 के बीच में भी हुई है जिनको नियमित किया जा चुका है।
याचिकाओ में कहा गया है कि 2014 तक हुई तदर्थ नियुक्त कर्मचारियों को चार वर्ष से कम की सेवा में नियमित नियुक्ति दे दी गई । किन्तु उन्हें 6 वर्ष के बाद भी नियमित नहीं किया अब उन्हें हटा दिया गया। पूर्व में उनकी नियुक्ति को 2018 में जनहित याचिका दायर कर चुनोती दी गयी थी जिसमे कोर्ट ने उनके हित में आदेश देकर माना था कि उनकी नियुक्ति वैध है। जबकि नियमानुसार छः माह की नियमित सेवा करने के बाद उन्हें नियमित किया जाना था।

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