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मशीनीकरण के इस दौर में विज्ञान के तमाम अविष्कारों के बाद भी मनुष्य की पशुओं पर निर्भरता कम नही हुई है । हालांकि पशुओं द्वारा किये जाने वाले कार्यों मे कमी जरूर आई है ।मशीनीकरण ने जहां ब्यक्तिगत स्तर पर पंजी का विकास किया है वही सामुदायिक अरंथब्यवस्था को अर्थब्यवस्था पलीता भी लगाया है , देश के सामने करोड़ो बेरोजगारों को रोजगार देना एक बड़ी चुनौती है क्योकि मशीनीकरण ने आम लोगों के हाथ से स्वभाविक कार्य छीनकर पूंजीवादी अर्थब्यवस्था को बढाया है ।पंजीवादी अर्थब्यवस्था का विकास करना ही बर्तमान शिक्षा का उद्देश्य है जिसमे श्रमआझारित अर्थब्यवस्था की शिक्षा बहुत ही सिमित है । ऐसे दौर मे निष्प्रयोज्य पशुओं की ब्यवस्था व प्रवन्धन एक चुनौती है इस चुनौती का ब्यावहारिक धरातल पर समाधान खोजने के लिये आज से तेरह वर्ष पूर्व , ज्योली के निकट कटारमल के शोले तोक में पूर्व से स्थापित बन्द हो चुके गुरुकुल में महर्षि दयानन्द दिवारा लिखित पुस्तक गौ करुणानिधि से प्रेरित होकर गौ सेवा न्यास का गठन कर गौशाला का आरम्भ किया गया , जो तब से अब तक अनवरत जारी है ।

आजादी के आन्दोलन में आर्य समाज की बड़ी भूमिका थी , सत्यार्थप्रकाश आजादी आन्दोलन की ही नही अपितु जातीय वैमनस्य को समाप्त कर वर्णाश्रम धर्मानुसार सबके लिये रोजगार व ब्यवस्था की मार्गदर्शक रुस्तक भी है ।, इस पुस्तक से प्रेरित हजारों लोग अपने अपने तरीके से विविध आन्दोलनों मे जुटे जिन्होंने राष्ट्रीय स्वाभिमान को ही नही उभारा अपितु आजादी के आन्दोलन को जमीनी स्तर माहौल बनाकर कार्यकरताओको आजादी के आन्दोलन से जोड़ा व मजबूत किया जिसमें गौ रक्षा आन्दोलन भी महत्वपूर्ण है ।

महर्षि दयानन्द द्वीरा स्थापित आर्य.समाज ने जिन – जिन राजनैतिज्ञों को उभारा उन सब की आर्य समाजी पहचान को समाप्त कर आज के इतिहास में उन्हें काग्रेसी ही कहा जाता है , आर्य समाज कोई राजनैतिक पार्टी नही था , इसीलिये राजनैतित स्तर पर श्रेय लेने के लिये नेता व इतिहासरार मार्तुल संगठन के नाम का उल्लेख नही करते ।

गाय की रक्षा के लिये महर्षि दयानन्द ने गौकृष्यादि रक्षिणी सभा कल्पित की किन्तु शहरों मे सिमित आर्य समाज के नेतृत्व मे इस तरफ ध्यान ही नही दिया जिस कारण यह आन्दोलन गतिशील नही हो पाया ।

गौसेवा न्यास आर्य समाज के गौरक्षा आन्दोलन को आगे बढा रहा है , इस आन्दोलन के दो ब़़ड़े लक्ष्य है जिसमे पहला लक्ष्य लुप्त हो रही गौवंशीय प्रजाति की रक्षा करना व दूसरा लक्ष्य किसानों की आर्थिकी में बृद्धि करना ,। तेरह सालों में हम आर्थिक मोर्चे में कमजोरी के कारण आशिंक रूप से गौवंशीय पशुओं की रक्षा करने में कामयाब हुवे है पर किसानों की आर्थिक बृद्धि के लक्ष्य को तभी प्राप्त कर सकते है , जब गौशाला आत्म निर्भर हो । इसके लिये समयानुकूल यान्त्रिक उपाय जरूरी है , गाय के गौमूत्र , व गोबर के ब्यावसायिक प्रयोग से उम्मीद की जा सकती है कि गौशाला आत्म निर्भर हो सकेंगी , किन्तु इसके लिये पूंजी की जरूरत है ।

इस सम्बन् मे गोसेवा के प्रकल्प के साथ जुड़े हुवे समाज के चिंतनशील लोगो से अपील है कि वे इस गौशाला को तन- मन तथा धन से सह्योग करे ।

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