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पौढी गढवाल ,पशुबलि , अंधविश्वास के खिलाफ अपना जीवन समर्पित करने वाले शगबर सिंह राणा ‘सत्यव्रती’ के निधन से आर्य जगत मे शोक की लहर है ।
सत्यव्रती ने गढ़वाल उत्तराखंड में लोगों को पशुबलि के खिलाफ जागरूक किया था , इसके लिये वे आजीवन सक्रिय रहे , जिसके फलस्वरूप गढवाल के कई मन्दिरों मे पशुबलि हमेशा के लिये बन्द हो गई , यदि देखा जाय तो आर्य समाज के बैनर तले वे आजीवन जूझके रहे उनके संघर्षों की गाथा बहुत बड़ी है, उनके आन्दोलनों के फलस्वरूप कई बार उन पर व अन्य आर्य समाजियों पर पाखंडियों द्वारा हमले हुए । वे भूखे प्यासे , पैदल पैदल चलकर अलख जगाते थे। उनके साथ मुहिम मे पंडित उम्मेद सिंह विशारद जी देहरादून का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।

यो तो गढवाल मे गब्बर सिंह राणा किसी परिचय के मोहताज नहीं थे।किन्तु मैदानी भागो मे लोग उनसे ज्यादा परिचित नही थे , आर्थिक रूप से विपन्न होने के बाद भी एक छोटा सा माइक हाथ में रखकर वे पौड़ी,बूंखाल,टिहरी,उत्तरकाशी देहरादून ,रूद्रप्रयाग, कालीमठ आदि स्थानों पर पशु बलि के खिलाफ लगातार श्रद्धालुओं को जागरूक करते रहे।

लगभग 50 वर्षों से श्री राणा विभिन्न मठ मंदिरों में पशुओं पर हो रहे निर्मम अत्याचार तथा भगवान के नाम पर उनकी बलि को लेकर वह हमेशा मुखर रहे हैं। पशु बलि के लिए प्रसिद्ध बूखाल में तो उग्र भीड़ द्वारा एक बार राणा से अपमान जनक व्यवहार कर उनके माइक को भी तोड़ा गया, लेकिन बावजूद इसके राणा के हौंसले कम नहीं हुए। गब्बर सिंह राणा मूलत जनपद रुद्रप्रयाग के जग्गी बागवान बेडूला के निवासी हैं । जब युवा वर्ग अपने मनोरंजन के लिए ताश खेलने में मशगुल रहते थे, ऐसे दौर में श्री राणा ने हाथ में माइक लेकर तत्कालीन उत्तर प्रदेश के कई मठ मंदिरों में जाकर पशुओं पर हो रहे अत्याचार से लोगों को जागरूक किया।
उनके बारे में यह भी बताया जाता है, कि सिद्धपीठ काली मठ में में 80 और 90 के दशक में सैकड़ो पशुओं की बलि दी जाती थी, एक बार स्वयं गब्बर सिंह राणा ने मां काली के मंदिर के सामने बलि देने वाले पत्थर पर सर रखकर लोगों से उनके सर को कलम कर देने की इच्छा जताई। और उसे पत्थर पर स्वयं लेट गए। इस बात से नाराज कई लोगों ने उनका विरोध भी जताया, लेकिन उनकी जिजीविषा और ऊर्जा लगातार उनके कार्य को सफल बना रही थी। निरीह जानवरों पर अत्याचार के प्रति हमेशा से श्री राणा ने समाज में जन जागरूकता फैलाकर कई मठ मंदिरों में पशुबली को पूर्णत प्रतिबंधित कर दिया था। कालीमठ आज उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । राज्य के विभिन्न मंचों पर श्री राणा के इस सामाजिक कार्य के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान भी प्राप्त हुए हैं। उनकी मृत्यु पर केदारनाथ विधायक श्रीमती शैला रानी रावत, भाजपा जिला अध्यक्ष महावीर पवार, जिला पंचायत अध्यक्ष अमर देई शाह, जिला पंचायत सदस्य विनोद राणा, गणेश तिवारी, उपहार समिति के अध्यक्ष विपिन सेमवाल, रमेश वेद भट्ट, सुरेशानंद गौड़ समेत क्षेत्र के हजारों लोगों ने उनकी मौत पर दुख प्रकट करते हुए उनके परिजनों को अवसाद की इस घड़ी में धैर्य प्रदान करने की प्रार्थना की है।

कोटद्वार से सुरेन्द्र लाल आर्य. बताते है कि मुंडनेश्वर मेले में सैकड़ों की संख्या में पशुबलि दी जाती थी ,तो एक बार की घटना है सत्यव्रती जी जनजागरण हेतु 2- 3 दिन पहले मुंडनेश्वर पहुँच गए थे, कोटद्वार से सही अर्थों में आर्य समाजी स्व. राजपाल बत्रा जी , स्व. सालिग राम शर्मा जी, आनंद प्रकाश गुप्ता जी, भानुप्रकाश बलोदी, स्व. हेमचंद्र गुप्ता जी,स् स्वयं सुरेन्द्क लास व. परमानन्द गुलियानी जी व तत्कालीन प्रधान आर्य उप प्रतिनिधि सभा गढ़वाल मेले में पशुबलि का विरोध कर रहे थे, तो भीड़ ने हम लोगों लोगों पर धावा बोल दिया, किसी तरह जान बच पाई ।
सत्यव्रती जी मेरे कार्यकाल में आर्य समाज रुद्रप्रयाग जिले के संयोजक थे
पंडित श्री उम्मेद सिंह विशारद जी देहरादून के निर्देशन में सत्यव्रती जी ने कालीमठ में आर्य समाज की स्थापना की थी ।

सुरेन्द्र आर्य कहते है सत्यव्रती जी के निधन से पशुबलि पर प्रहार करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ेगा । उनके साथ के कई संस्मरण हैं जिन्हें उकेरना आसान नहीं है । सुरेन्द्र आर्य जी रे साथ ही देहरादून से उम्मेद सिंह विशारद , अल्मोडा से दयाकृष्ण काण्डपाल बागेश्वर से गोविन्द भण्डारी ने गबर सिंह राणा के निधन पर शोक संवेदना ब्यक्त की है , ।

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