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आज मुहल्लों  के हर घर मे महिलाओं मे उपवास तोडने   की  होड़ मची रही ,हर किसी की तमन्ना थी कि कम से कम नौ बच्चियां उनके घर जरूर आ जाय  , पर जब बच्चिया पैदा ही कम हो रही है तो संख्या कैसे पूरी होगी ।

मुहल्लों की अन्य बच्चियों के साथ ही जब पड़ोस की बच्ची भी गई तो उसे चार घरों से चालीस रुपये चार चुनरी चार पैकेट बिन्दी , चना पूरी मिली बच्चे कितना खाते फिर भी खिलाने का नियम है तो उन्होंने चख कर बर्बाद करना ही था , इस बार केले महंगे हो गये तो बच्चों के पास केले कम देखे गये ।

बरर्सों पहले लगभग पचीस साल पहले की बात रही होंगी , कम से कम बीस बरस तो हो ही गये है , अल्ट्रासाऊण्ड़ मशीन बाजार मे नई -नई आई , चिकित्सकों के हाथ मे तो मानो जादुई बक्सा ही आ गया । अल्ट्रासाऊण्ड़ मशीन लेकर चिकित्सकों ने जगह – जगह कैम्प करने आरम्भ कर दिये , इन अल्ट्रासाऊण्ड़ केन्द्रों मे खुलेआम तीन महिने के बाद भ्रूण परिक्षण होने लगे गर्भ मे ही कन्या भ्रूण पर छूरिया चलने लगी ।इसका असर समाज मे तब ही पड़ने लगा था आज तो यह बिकराल समस्या बन गई है। हरियाणा, दिल्ली पंजाब प्रान्त में इसका ब्यापक प्रभाव पड़ा , एक संभान्त युवती इस घटना से बड़ी ब्यथित हुई उसके मन मे आया कि लड़की होना क्या पाप है । उन्होंने संकल्प लिया , कि वह अपने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की नौकरी छोड़ देगी , और विवाह नही करेंगी वह इस अमानवीय कन्यां भ्रूण हत्या के खिलाफ आन्दोलन करेगी , उन्होंने अपनी मन की ब्यथा को उस दौर के सबसे चर्चित सन्यासी ,स्वामी अग्निवेश को बताया , स्वामी जी का सहयोग मिलने के बाद बेटी बचाओं आन्दोलन का सूत्रपात हुवा यह एक राष्ट्रीय अभियान बन गया । इस आन्दोलन का सूत्रपात करने वाली दो युवतिया आज देश के लिये आदर्श बन गई इनका नाम है प्रवेश आर्या व पूनम आर्या ।

प्रवेश व पूनम ने हरियाणा प्रान्त ही नही देश के अधिकांश राज्यों में बेटी बचाओं आन्दोलन का सूत्रपात किया , यह आवाज , भारत सरकार के कानों मे गई तो सरकार के कान खडॉे हो गये , आनन – फानन मे सरकारी आदेश जारी हुवे कि गर्भस्थ शिशु का लिंग बताना कानूनी अपराध है आर्य समाज के इतिहास मे बहिन प्रवेश व पूनम आर्या ने एक नई उपलब्धि जोड़ दी ।

आज के दौर में भी लिंग परिक्षण कानूनी अपराध होने के बावजूद बन्द हो गये है ,यह यकीन के साथ नही कहा जा सकता , ।यदि ऐसा होता तो विवाह योग्य युवकों के सामने विवाह का संकट ना होता , अब लैंगिक असमानता बहुत अधिक हो गई है ।तथा विवाह योग्य युवकों को विना विवाह के ही जीवन यापन करना पड रहा है । इस देश मे गर्भ में ही कन्याओं की भ्रूण हत्याये हो रही है आजकल बेटी बचाओं बेटी पढाओं सरकारी कार्यक्रम भी है पर सरकार ने बहिन प्रवेश व पूनम के कार्यक्रम को अंगीकार तो किया पर उन्हें अब तक राजनैतिक मजबूरियों के चलते किसी राष्ट्रीय कार्यक्रम मे सम्मान योग्य पुरुषकार नही मिला इतना जरूर है कि उनके अभियान को सब ओर से नैतिक समर्थन प्राप्त है यद्यपि ये दोनो हरियाणा सरकार की बेटी बचाओ कार्यक्रम की प्रमुख है सरकार ने इन्हें बेटी बचाओं रथ प्रदान किया है , ।

कहने का अभिप्राय यह है कि यदि बच्चे ज्यादा भी हो जाय तो कोई भी शंवेदनशील ब्यक्ति उनकी हत्या नही करेगा , गर्भस्थ शिशु की हत्या तो महापाप है , ऐसे लोगों को कन्या पूजन व बहु पाने का कोई हक नही है । कन्यां पूजन कोई दिखावा नही दिल का बिषय.है इसके लिये अभिनय की नही मानवीय संवेदनाओं की आवश्यकता है ।

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