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आज से करीब 27 वर्ष पूर्व अपनी जान देकर राज्य का ताना बाना बुनने वाली जनता ने कब सोचा था कि वह जिस राज्य के लिये बलिदान देने के लिये उतारु है वह राज्य पहा़ड के विकास का विकल्प बनेगा या नही ,, पर एक उम्मीद थी कि उनके बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिये उत्तराखण्ड़ राज्य जरूरी है , राज्य बना पर पहाड़ आज भी उपेक्षित है समय – समय पर आन्दोलनकारियों द्वारा डाले गये जन दबाव के फलस्वरूप विजय बहुगुणा की सरकार ने गैरसैण मे राजधानी के लिये बजट की ब्यवस्था की जिस पर हरीश रावत की सरकार ने काम आरम्भ किया , । गैरसैण मे विधानसभा भवन बनकर तैयार तो हो गया पर वह एक काल्पनिक राजधानी से ज्यादा कुछ भी नही है ।

इस अवसर पर आयोजित सभा में वक्ताओं ने कहां कि उत्तराखण्ड़ की पहाड़ियों का देश के सामरिक महत्व के लिये अपूर्व योगदान है ,चायना अपनी सड़कों को उत्तराखण्ड़ की पहाड़ियों तक ला चुका है , पर हमारी देश की सरकार व राज्य सरकार उजड़ते पहाड़ों को देखकर भी अनदेखा कर रही है , एक ओर जहां चायना ने अपनी तरफ कालौनिया बसा दी है वही हमारी सरकार एक अदद राजधानी तक पहाड़ मे नही ला पाई । दो अक्टुबर को गैरसैण में उक्तराखण्ड साझा मन्च के कार्यकरताओं ने राजधानी गैरसैण के लिये गैरसैण रामलीला मैदान मे सभा व विधानसभा भवन के सामने शांकेतिक प्रदर्शन किया इस प्रदर्शन में राजधानी निर्माण संघर्ष समिति के नारायण सिंह , उ लो वा के दयाकृष्ण काण्ड़पाल उ प पा की रंजना सिह , राजधानी बनाओ आन्दोलन के महेश पाण्ड़े , धूमा देवी , सहित साझा मन्च के संयोजक गोविन्द भण्ड़ारी , ब्रह्मचारी अमित , गंगासिह पांगती , आदि लोगो ने , इस अवसर पर ब्रह्मचारी अमित की अध्यक्षता व गोविन्द भण्डारी के संचालन में आयोजित सभा मे विचार ब्यक्त किये ।

सभा का संचालन करते हुवे साझा मन्च के संयोजक गोविन्द भण्ड़ारी ने कहा कि राज्य की मांग पहाड के उपेक्षित विकास के खिलाफ बिकास के लिये लड़ा गया पर पर्वतीय लोग आज भी छले जा रहे है ।, उ लो वा के दयाकृष्ण काण्डपाल ने कहा कि उ लो वा
आन्दोलनकारियों ने मांग की कि गैरसैण को पूर्णकालिक राजधानी बनाकर सरकार देश की सीमाओं को सुरक्षित करे ।
