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उत्तराखण्ड़ की सरकार ने जब से कौमन सिविल कोड़ की प्रक्रिया आरम्भ की है देश भर में इस मुद्दे को लेकर बहस चल रही है । हिन्दुवादी संगठन इस मुद्दे पर जनता को यह समझाने की कोशिस कर रहे है कि इसका असर मुस्लिम वर्ग पर पड़ेगा , पर यदि देखा जाय तो इसका कोई विशेष असर मुस्लिम समाज पर अलग से नही पड़ना है , मोदी सरकार इस मामले पर तीन तलाक पर कानून बना चुकी है ,यद्यपि मुस्लिम समाज मे बहुपत्नी विवाह मान्य है पर यदि विवाह पर कोई आपत्ति ना करें तो इस पर असर नही पड़ता कानून अपना काम तब करता है जब कोई कानून की शरण में जाता है । मुस्लिम समाज विवाह के मामलों में आपस दारी से जुड़ा है इस समाज में चचेरी बहिन मामा भान्जी सौतेली भाई बहिनों के बीच मे सहमति से सम्बन्ध बनाने की प्रथा है उनका धार्मिक विस्वास है कि कुरान में इसकी इजाजत है । सुप्रिम कोर्ट पहले ही वैवाहिक पत्नी के होते हुवे भी लिभ इन रिलेशनसिप का अधिकार दे चुका है ऐसे में विवाहादि सम्बन्धों में तभी असर पड़ेगा जब कोई न्यायालय का रूख करेगा , इस पर आपत्ति करने के लिये मौलवी द्वारा कल्मा पढकर मेहर की राशि व कबूलनामा करवाना एक प्रक्रिया है । तलाक पर कानून पहले से ही है यह कानून तो अभी भी प्रभावी है ,जब कोई न्यायालय में जाता है ।शाहबानों केश में जब सुप्रिम कोर्ट ने तीन तलाक को जब गैर कानूनी घोषित किया तब उस समय की केन्द्र सरकार ने कानून बनाकर इसे पलट दिया , किन्तु नरेन्द्र मोदी की सरकार ने तीन तलाक पर कानून बनाकर उन मुस्लिम महिलाओं को राहत प्रदान कर दी है जो मामले को लेकर कोर्ट का रूख करती है जो कोर्ट मे नही जाती वे शरीयत के अनुसार तलाक व हलाला को स्वीकार कर लेती है ।
कौमन सिविल कोड़ पर पूर्वोत्तर राज्यों में भी बहस चल रही है , इन राज्यों में अलग -अलग समुदायों के लिये अलग -अलग कानून है ,इसी प्रकार देश के आदिवासी समाज में भी इसे लेकर आशंकायें जिसे लेकर संघ परिवार की संस्था बनवासी कल्याण आश्रम ने भी सिथिलता की सिफारिश की है ।
सामान्यत: यदि देखा जाय तो संविधान की धारा 40 के अनुसार संविधान में सरकार को यह अधिकार है कि वह कौमन सिविल कोड़ देश में लागू करें इसी आर्टिकल के अनुसार उत्तराखण्ड़ सरकार के साथ अब केन्द्र सरकार भी कौमन सिविल कोड़ को लेकर सक्रिय है ।