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1857 मे साधु सन्त राजा महाराजाओं ने एक साथ देश की आजादी के लिये हुंकार भरी थी और अपना सम्राट भी तय कर दिया था किन्तु बहादुर साह जफर व क्रान्तिकारियों का पूरा परिवार नष्ट कर दिया गया जिन्होंने भी ब्रिटिश सामाज्य को शक्ति दी उसे पुरुष्कृत किया गया ।इस बिद्रोह के बाद ब्पाहिमण व गलितों रो लेना मे भर्ती करने पर रोक लगा दी गई । वह ब्रिटिस सम्राज्य का उत्कर्ष काल था ।
ब्रिटिश साम्राज्य के उत्कर्ष काल में और 1857 की क्रान्ति के विफल हो जाने पर जब सब भयभीत थे तब महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश और आर्याभिविनय के माघ्यम से और भाषण से भी स्वराज्य का नारा गुंजाया अंग्रेजों ने पूछा कि हमारे राज्य में आपको क्या कष्ट है महर्षि ने बताया कि वह तो पूरी तरह मौज कर रहे हैं फिर अंग्रेजों ने पूछा कि कोई कष्ट न होते हुए आप इतनी उग्रता से इस शासन का विरोध क्यों कर रहे हैं
महर्षि ने कहा सन्यासी किसी का अपना पराया नहीं होता वह धर्म, सत्य और न्याय की बात कहता है , आप इंग्लैण्ड में बैठकर सत्यार्थप्रकाश पढिए तब समझ जाएंगे अंग्रेजों ने खुलकर समझाने को कहा तब महर्षि ने बताया कि क्या आप अपने देश में विदेशी शासन पसन्द करेंगे यदि नहीं, तो विदेशी शासन को हम क्यों पसन्द करें ?
तब से अंग्रेज़ों को महर्षि और आर्य समाज सर्वाधिक खतरनाक दिखने लगे
अंग्रेज आर्य समाज का बिकल्प तैयार करने की सोचने लगे , गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी पर भरोसा किया। गाँधी दक्षिण अफ्रिका में अंग्रेजो के खिलाफ लडकर आये, राजनैतिक तौर पर गांधी व आध्यात्मिक तौर पर विवेकानन्द इसी काल खण्ड की ऊपज रहे ।अमेरिका के निग्रो को अमानवीय तौर पर समाप्त कर देने वाले अंग्रेज सभ्य ,किन्तु यहूदियो से अमानवीय लडने वाला भारत की आजादी मे योगदान देने वाला हिटलर आज भी गालिया खाता रहता है ।
महर्षि दयानन्द वह युगपुरुष हुवे जिन्हे भारत की चेतना का लूर्य कहा जाय तो उचित ही होगा ।