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अल्मोड़ा 3 जुलाई , गौ सेवा सदन गौ शाला ज्योली नगर के पास एकमात्र गौशाला है जहाँ ढाई दर्जन से अधिक गौवंश को शरण दी गई है । किन्तु गौशाला मे अब और अधिक गौवंश को रखना कठिन होता जा रहा है । गौशाला संचालकों का कहना है कि इसका कारण गौ शाला मे स्थान व चारे की कमी है ।

यदि किसी को भी धार्मिक संस्कारो हेतु गौवंश की जरूरत है तो वह गाय ले जाकर संस्कार के उपरान्त गाय को गौ शाला को को वापस कर दे

गौशाला को अभी तक कोई राजकीय सहयोग भी प्राप्त नही है भविष्य के लिये प्रयास जरूर हो रहे है ।पर सरकारी सहयोग इतना नही है कि कि गौशाला चलाई जा सके ।सेवानिवृत कर्मचारियों व दानदाताओं के बलबूते इन गौवंशीय पशुओं का संरक्षण हो रहा है । गौशाला के संस्थापक , सचिव दयाकष्ण काण्डपाल , पूरन चन्द्र तिवारी चन्द्रमणी भट्ट सहित तमाम सब यहयोगियों को लोग आये दिन फौन करते रहते है कि उनके पास गाय बैल , बछड़ा पड़ा है उसे गौशाला मे शरण दे पर यह उतना आसान नही है , कारण चारा , सेवकों का बेतन आदि की ब्यवस्था करना है ।

आवास व चारे के कमी के कारण क्षमता से अधिक गौवंश लेना असंम्भव

गौ सेवा न्यास ने लोगो से अपील की है कि हर गांव मे कमसे कम एक गौशाला स्थापित होनी चाहिये ताकि लोगो के धार्मिक क्रियाकलाप व गौवंश की रक्षा हो सके , उन्होने कहा है कि ृदि ज्योली कटारमल कोसी व आसपास के गांवो मे किसी को भी अपने धार्मिक क्रियकलाप सम्पन्न करने के लिये गाय की जरूरत है तो वह गैशाला से ले जाकर वापस गौशाला मे ला सकते है गौशाला अब बाहर से लाई गई गौ वंश को गौशाला मे शरण देने मे असमर्थ है ।

गौवंशीय पशुओं के बित्तीय प्रवन्घन के लिये बनाई गई ,

गौशाला आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द की प्रसिद्ध पुस्तक गौकरुणानिधि से प्रेरित होकर गुरुकुल मे स्थापित की गई है पर यह काफी नही है हर गांव मे एक गौशाला जरूरी है ।

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