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समाज में विवाह आदि के नियम यद्यपि धार्मिक ब्यवस्था के तहत होते है पर इनमें राजनैतिक ब्यवस्थाकी छाप होती है ।। इनदिनों शान्ति का माहौल है तो रात्री के बजाय दिन मे ही विवाह होने लगे है । एक बड़ा कारण पुरुषों का नशेड़ी होना भी है । नशे ने लोक परम्पराओं को को कुचल कर रख दिया है ।
इतिहास मे वह दिन भी थे जब बारातें पैदल ही अपने गन्तब्य को जाती थी उस दौर में , हिंसा की काफी संम्भालना रहती थी बापातियों केसाथ कही मारपीट की घटना या डकैती ना हो जाय इसके लिये शस्त्रधारियों का एक दल बारात के साथ चलता था , अक्सर घराती या बारातियें के बीच में भी संघर्ष की नौबत आ जाती थी ऐसे समय मे छोलिया नर्तकों का यह दस्ता , नृत्य मनोरंजन के साथ ही सुरक्षा का प्रबन्ध करता था । उस दौर में राजकीय सुरक्षा केवल राजाओं महाराजाओं व राजनैतिक सिपहसलाकारों को ही मिलती थी । आम लोगों को अपनी सुरक्षा खुद ही करनी पडती थी ।
आज भी शादि विवाहों में जब हम छोलिया नर्तकों ढोल दमाऊ , खतरो व शान्ति के निशानों को लेकर चलते है है तो इसका मतलब केवल मनोरंजन नही है । युद्ध की आहत व उससे निपटने की तैयारी भी है । यद्यपि वर्तमान में कई परम्पराये छूट गई है ।तथापि कुछ परम्परायें शांकेतिक रूप में मौजूद है । इन्हे बचायें रखना इतिहास व भविष्य की चुनौतियों के लिये जरूरी भी है । हमारी सरकारे भलेहि लोकहित के तमाम कार्य कर रही हों फिर भी मनुष्य में अपनी सुरक्षा के प्रति हमेशा जागरूकता होनी चाहिये इसी कारण बारातों मे नर्तको के रूप में छलिया नर्तको को ले जाने की परम्परा चल पड़ी ।