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आप लोग कम से कम दो चार भाई बहिन तो होते ही थे , चाचा चाची ताऊ ,ताई अमा , बुवा , आदि आदि , आप अपने जमाने की बात करते हो , तब यदि मां डाठती तो अमा बूबू गले लगा लिया करते , चाचा चाची की दुलार मिलता अब के बच्चों का कौन है जो उन्हें मां के डांठने पर गले लगा लेगी प्यार करेंगी इनकी गलतियो पर नजर रखेंगी कहांनिया सुनाऐगी ।
आजकल के बच्चों का कौन है मां -बाप के सिवा , अमा , बूबू गांव मे या है ही नही , या दूसरे शहरों मे है , माता – पिता दोनो जौंब मे या फिर कमसे कम एक तो है ही , यदि अपना राम भी कर रहे है तो बच्चों के लिये समय कितना है उनके पास , चाचा चाची ताऊ ताई बुवा या तो है ही नही यदि है भी तो हम बच्चों सेसे बहुत दूर , मां -बाप भी बहुत कम समय हम बच्चो को दे पाते है । थोडॉ सा जो समय मिलता है उसी में वह अपना प्यार लुटाते है हमारे पास संवेदनाये रिस्तों की समझ कहां से आयेगी । एक बातचीत मे एक बच्ची ने जब यह बात कही तो मै निरुत्तर हो गया ।
सच मै अब तो निभाने के लिये ही नही कहने के लिये भी रिस्ते बहुत कम बचे है , एक भाई या एक बहिन ,या अधिकतम दो भाई बहिन , चाचा ताऊ तो है ही नही या बहुत ही कम है चाची चाचा ताऊ मौसी , तो कुछ सालों मे काल्पनिक शब्द हो जाईगे , समाज में सिमित व एकल परिवारों का चलन बढा है । इसका असर बचपन से लेकर जवानी व बुढापे तक पडना तय है ।बहुतों को तो अब बहु ही नसीब नही होती , यदि हो भी गई तो नखरे सहने के लिये तैयार रहना चाहिये , अब तो रजाई की तरह घर बदलने का रिवाज भी पैदा हो रहा है , जीवन मे परम्पराओं परिवारों रिस्तों के माईने ही समाप्त हो रहे है ।
परिवार नियोजन एक परम्परा बन गई है , पूर्व प्रधानमन्त्री स्व इन्दिरा गांधी ने जब परिवार नियोजन कार्यक्रम आरम्भ किया था तब उनकी सरकार चली गई थी , इसके बाद भी भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबाबी वाला देश बन गया है कुछ लोग आज भी दर्जनों बच्चे पैदा कर रहे है पर कुछ लोगो ने परिवार नियोजन को एक नियम बना लिया है । इसके प्रभाव व दुस्प्रभाव दोंनों ही है । पर यह जरूरी है कि लोगों ंे नजदीकिया हो अधिक दूरिया अन्तत: बच्चों री तरह ही लोगो के जीवन मे अकेलापन , डिप्रेसन , व संवेदन हीनता जैसी घातक प्रबृतियों को जन्म दे रही है ।