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सिनेटरी पैड़ ने महिलाओं व बच्चों के लिये एक बडडी सुविधा के रूप में बहुत ही उपयोगी स्थान बनाया है । अब पैडॉ एक प्रकार से दैनिक उपभोग की वस्तु बन गया है । समय के साथ ही पैड़ का बाजार भी बहुत तेजी के साथ बढ रहा है पर इसके उपयोग को लेकर एक एन जी ओं नेएक चौकाने वाला रिसर्च किया है , जो मीडिया की सुर्खियां बना हुवा है । सैन्टरी पैट के सभी नमुनो मे थैलेट व वास्पशील कार्वन यौगिकों की मौजूदगी पाई गई । दोनों ही प्रदूषक रसायनों में कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं को विकसित करने की क्षमता होती है ।

अध्ययन में कहा गया है कि थैलेट के संपर्क से हृदय विकार, मधुमेह, कुछ तरह के कैंसर और जन्म संबंधी विकार समेत विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं होने की बात कही गई है. वीओसी से मस्तिष्क विकार, दमा, दिव्यांगता, कुछ तरह के कैंसर आदि समस्याएं होने का खतरा होता है. । अभी तक सैनेटरी पैड़ को सुरक्षित माना जाता था ।

टाक्सिक्स लिंक नामक एक संस्था के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि युरोप की तूलना में भारतीय सैनेटरी पैड की सान्द्रता युपोपीय विनिमय मानक की तूलना में तीन गुना अधिक है टाक्सिंस लिंक की कार्यक्रम समन्यवयक आकांक्षा मेहरौत्र के हवाले से मीड़िया मे कहा गया है कि श्लेष्मा झिल्ली के रूप मे योनि त्वचा की तूलना मे तीन गूना अधिक रसायनों को श्रवित व अवशोषित करती है

इस सम्बन्ध में युरोप की तूलना में भारत मे स्वच्छ साधनों को अपनाने के बजाय भारतीय महिलाओं को सैमेचरी पैड़ के उपयोग के लिये कहा जा रहा है । सैनेटरी पैड़ के निर्माण उपयोग व संरचना पर भारत के मापदण्ड़ बी आई एस मापदण़्ड़ो के बाद भी कड़े नही है ।

सैनेटरी पैड़ के बिकल्प

आजकल कामकाजी महिलाये अपने बच्चों के मल व अपमे मासिक धर्म के दौरान होने वाले सामान्य रक्तश्राव के धब्बों से बचने लिये सैनेटरी नैपकिन का प्रयोग करती है । बाजार मे उपलब्ध अन्य वितल्पों के बारे मे जानकारिया कम होती है पर इसके अन्य विकल्प बाजार में मौजूद है । जिसमे 1- टैपून 2- क्लाथ पैड 3- मैस्टवल कप 4- मैस्चुवल स्पान्ज

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