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“संसार में कोई भी व्यक्ति लगातार 100 % सुखी नहीं हो सकता, और 100 % दुखों से नहीं छूट सकता। यह जीवन का सत्य है।”
ऐसा क्यों है? “क्योंकि आत्मा का जिस प्रकृति या भौतिक संसार के साथ संबंध है, वह प्रकृति 100 % सुख नहीं देती। उसमें यह क्षमता ही नहीं है। बल्कि थोड़ा सा सुख देने के साथ-साथ वह बहुत सा दुख भी देती है। उसका स्वरूप ही ऐसा है।”
अब आत्मा की इच्छा इससे अलग है। आत्मा की दो इच्छाएं हैं। “वह 100 % सुख प्राप्त करना चाहता है, और 100 % दुखों से छूटना चाहता है। परंतु वह अपना संबंध बनाए बैठा है इस दुखदायक प्रकृति के साथ। इसलिए उसकी ये दोनों इच्छाएं संसार में जीते जी तो पूरी नहीं हो सकती।”
हां, “यदि आत्मा इस भौतिक संसार या प्रकृति से अपना संबंध पूरी तरह से तोड़कर इससे अलग हो जाए, और सर्वगुण संपन्न 100 % आनन्दस्वरूप परमात्मा के साथ अपना संबंध जोड़ ले, तब उसकी ऊपर बताई गई ये दोनों इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।” और ऐसा केवल मोक्ष में ही संभव है। “इसलिए सभी लोगों को मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्य बनाना चाहिए और उसके लिए पूरा प्रयत्न करना चाहिए।”
परंतु जब तक आप संसार में जीवित हैं, और अपने कार्य कर रहे हैं, तो यहां की स्थिति के अनुसार जीवन में कभी अच्छे दिन भी आएंगे, जब आपको सुख मिलेगा। और कभी कभी बुरे दिन भी आएंगे, जब आपको दुख भी भोगने पड़ेंगे। कोई बात नहीं, “जब तक आप संसार में हैं, तब तक कोई न कोई ढंग तो निकालना ही होगा, जिससे कि आप कम से कम दुखी हों, और अधिक से अधिक सुखी रहें।”
तो इसका उपाय यही है, कि “जिन दिनों में आपको सुख मिले, उन दिनों में “अभिमान मत कीजिएगा।” क्योंकि अभिमान करने से व्यक्ति की बुद्धि नष्ट हो जाती है, और वह उल्टे काम करने लगता है, जिससे उसका दुख बढ़ता है।”
“और जब बुरे दिन आएं, अर्थात जिन दिनों में आपको दुख भोगने पड़ें, तब “धैर्य को मत खो दीजिएगा।” क्योंकि धैर्य को खो देने से व्यक्ति अनेक प्रकार से विचलित हो जाता है, और वह दुखों का सामना नहीं कर पाता, घबरा जाता है। अनेक बार तो आत्महत्या तक भी कर लेता है।”
“इसलिए ऐसी सभी समस्याओं से बचने के लिए “दुख के दिनों में धैर्य को अवश्य ही बनाए रखें।” यदि आप धैर्य बनाए रखेंगे, तो धीरे-धीरे सब समस्याएं हल हो जाएंगी, और आपको जीवन में फिर से सुख प्राप्त हो सकेगा।”
साभार —- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात।”