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देश मे करोड़ो लोग है जो अपने मत पन्थ व सम्प्रदाय व उसकी अच्छाई व बुराई पर यकीन करते है । इसी विस्वास के नाम पर यह मत पन्थ व सम्प्रदाय चल रहे है । हाल के दिनों मे  एक नाम मीड़िया मे बड़ी तेजी से उभर रहा है वह नाम है पं धिरेन्द्र शास्त्री का , शास्त्री दावा करते है कि उन्हें अन्त:करण जानने की सिद्धि है । यह कोई नई बात नही है,हमारे आसपास मे ही कई सन्यासियों के नाम चर्चित है जो आभाष से ही जान लेते थे कि उनसे मिलने कौन आ रहा है क्या कुछ घटित होना है, गली मुहल्ले चौराहों मे कई लोग है जो हाथ कपाल देखकर किसी का भी घटनाक्रम बताने का दावा करते है कई बार छगे जाते है । ,   यदि पुरातन ग्रन्थों की बात करें तो कई प्राचीन ग्रन्थों मे कथानकों मे इस बात का जिग्र है कि कई लोगों में यह सामर्प्थ्य होती है कि वह अन्तर्मन  को जानते है । 

महर्षि दयानन्द सत्यार्थ प्रकाश मे लिखते है कि  आंख के अन्धे गांठ के पूरे लोग  ज्वर सन्निपातादि रोगों के विविध नाम धरते है भूत प्रेत चुडैल , आदि इसके बाद नाचने नचाने का क्रम चलता है । जो स्वयं गन्दे आचरण के लोग है वह दूसरे को शुद्ध करने की बात करते है ।  तो क्या भूत प्रेत चुडैल नही होते ?  

अवश्यमेव भोकतब्यम कृत कर्म शुभासुभम

हर किसी ब्यक्ति के जीवन की तीन अवस्थायें होती है , भूतकाल , वर्तमान काल व आने वाला भविष्यकाल यह तीनों काल एक दूसरे से जुड़े हुवे है । भूतकाल के अनुसार ही बर्तमान काल होता है भूतकाल मे अर्जित ज्ञान  ही बर्तमान का मार्गदर्शक व वर्तमान की चेष्ठाये भविष्य तय करेंगी , इसलिये हम यह नही कह सकते कि भूत नही होता । भूतकाल मे की गई  गलतियों के कारण  आज वर्तमान मे जोशीमठ धस रहा है । भूतकाल मे खानपानादि दोषों के साथ ही प्रकृति  की बर्तमान  अवस्था वाईरस , ज्वर, मानसिक अवसाद के कारण बनते है ।  भूतमें किृे गये ने कार्ृ जो स्वयं को अच्छे नही लगते उनरे सार्वजनिक हो जाने का भय मनुष्य को रोगी बना देते है यह  अदृष्य भय है , , मन मे  पढी किसी भूतकाल की छाप जब  जब काल्पनिक प्रतिविम्ब बनकर  मन मे तैरने लगते है तो  काल्पनिक प्रतिबिम्ब स्वप्न व साक्षात  भी दिखने लगते है , यह सब बिमारी   व अवसाद हमारे बर्तमान को खराब कर देते है । जिसके फलस्वरूप स्वभाव व मानसिक  अवस्थाये बदलने लगती है । यदि यह बदलाव असामान्य हो जाय तो हम इस असामान्य व्यवहार के कारणों को भूत प्रेत , उन्माद कह देते है ।  बर्तमान हमारे भूतकाल की परिस्तिथियों की देन है भूतकाल मे हमसे जो गलतिया हुई , या हमारे माता पिता   से जो गलतिया हुई उसकी  छाया हमारे जीवन मे अवश्य पड़ती है । उनके द्वारा किये गये अच्छे कामों की छाया  भी जीवन मे पड़ती है संगत की छाया भी जीवन का निर्माण करती है ।  इन सब क्रिया कलापों को हम जीवन  के मानस पटल पर सहेज कर रखते है ।  और इनका फल शुभ या अशुभ  हम अवश्य ही भोगते है ।

            क्या चमत्कार होते है

प्रकृति की किसी ऐसी  घटना को जिसके होने का कारण हम नही जान पाते इसे  सामान्यत:  चमत्कार मान लिया जाता है ।   जैसे केदारनाथ मे आपदा आई पर एक विशाल पत्थर ने केदारनाथ मन्दिर मे आड़ लगा दी मन्दिर बच गया , सामान्यत: यह प्रकृति की घटना थी  पर लोगों ने इसे चमत्कार यह चमत्कार भी है ।

क्या पं धिरेन्द्र शास्त्री कोई चमत्कार कर रहे है ।

मानसिक अवसादजन्य रोंगो के उपचार की अनेक विधियों मे ,  एक विधि रोगी की मानसिक  संन्तुष्ठि भी है । पं धिरेन्द्र शास्त्री , उन लाखों लोगों की भूतकाल की परिस्तिथियों से उनको अवगत करा रहे है जिन्हें अवसादग्रस्थ  ब्यक्ति पहले से ही जानता है  पिछले कई दिनों से पं. धिरेन्द्र शास्त्री के  बीडियों वाईरस हो रहे है   उसंमे किसी भी ब्यक्ति के जीवन मे भविष्य में क्या घटित होने जा रहा है इसकी बात  उन्होंने नही कही सारी चर्चा भूतकाल व बर्मान पर ही है   इतना अवश्य होता है कि वह बर्तमान के आधार पर भविष्य के लिये आगाह कर रहे है ।, उस भूत को भगाने की बात कर रहे  है जो मानसिक अवसाद के रूप मे दिमाग मे बैठ गया है ।  महर्षि दयानन्द जब सत्यार्थ प्रकाश में यह लिखते है  कि मानसिक अवसाद आदि लोगों के नाम  इन लोगों मे भूत प्रेत चुडैल आदि  रखे है , इनका शास्त्रोक्त , औषधीय उपचार करने के बजाय लोग यदि  पाखण्ड़ियों के पास  जाते है  तो अपनी धन-हानि व जीवन में सतत असन्तोष का आलंम्बन करते है । ईश्वर को साक्षी मानकर  प्रायश्चित कर सात्विक विचार अपनाने से भी जीवन के कष्ट अवसाद दूर होते है ।  धिरेन्द्र शास्त्री कोई चमत्कार नही कर रहे , ऐसे चमत्कार तो हमारे गांवो ंे पोज ही होते है । गांव मे मे ओझा  डंग्गरिये  पादरी मौलवी यह काम खूब कर रहे है , इन सबके भी बड़े -बड़े दरबार सजते है ।, गाड़ियो बस अड़्डो मे खूब स्टीगर लगे रहते है ,  बड़ी मात्रा मे लोगो के साथ ठंगी हो रही है , धिरेन्द्र शास्त्री ठंगी नही कर रहे अपितु उपचार के नाम पर जो धर्मान्तरण हो रहा है वे इसमें कुछ रोक अवश्य लगा रहे है , धर्म के रूढीवाद  व धर्मान्तरण मे वे ही लोग फँसते है जो रूढीवादी , मानसिक अवसादी व अपने जीवन में  असहज है ।   धिरेन्द्र शास्त्री कोई ठगी नही कर रहे है बल्कि अवसादग्रस्थ लोगों को अपने ही स्वधर्म मे रहकर उनकी मानसिक वेदनाओं को  संमझ व समझा रहे है , कारण व निवारण बता रहे है    वैदिक विचारधारा  का आलम्बन करने वाले किसी भी ब्यक्ति को भूतप्रेत मानसिक  अवसाद नही सताते ।   किन्तु समयानुकूल ब्याधियों से वे भी मुक्त नही है ।

यदि चमत्कार कर रहे है तो जोशीमठ मे पड़ रही दरारो पाट दे शंकराचार्य

ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरा नन्द  ने इस सम्बन्ध में पूछे गये एक सवाल के जबाब मे कहा है  कि  समय के अनुसार कुछ घटनाये घटित हो जाय तो  इसे चमत्कार  नही माना जा सकता  आज जोशीमठ दरक रहा है यदि चमत्कार है तो इन दरारों को  पाटने का काम करे ं ।

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