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महर्षि दयानन्द ने भद्र व संस्कारी पुरुषों व महिलाओं से अपेक्षा की थी कि वे अपनी पहचान सनातन वैदिक धर्म से व देश की पहचान आर्यावर्त से करें शास्त्रो व संकल्प में भारत राष्ट्र की पहचान आर्यावर्त से ही है । महर्षी दयानन्द के इस कथन को आर्य जनों ने अपने लिये सलाह माना वे अपनी जाति के आगे आर्य लिखने लगे ताकि जातिगत भेदभाव व पहचान नष्ट हो, भारत में ब्राह्मण क्षत्रिय , वैश्य व शूद्र चारों वर्णो के लोग अपने आगे आर्य लगाते है । ज्यादातर अपने नाम के साथ वे भी आर्य लगाने लगे है जिनका सनातन वैदिक धर्म से लेना देना नही है । रिषिकेष के अंकिता हत्या राण्ड मे शामिल गुप्ता बन्धुओं का आचरण आर्य मर्यादाओं के अनुकूल नही है ।स्पष्ठ है कि वह ब्यवहार में आर्य वैदिक धर्म को अपनाने मे पीछे आर्य समाज के खोल मे छुपे एक भेड़िया निकले ।।
पौढी गढवाल के रिषिकेश मे अपना रिजोर्ट चला रहा अंकुर आर्य , नाम का ही आर्य है , उसने वैदिक धर्म के नियमों व ंमान्य आचरण का निर्वाह नही किया। एक अनैतिक कार्य को अंजाम दिया , लोग सवाल कर रहे है कि यह कैसा आर्य है जो अपने कर्मतारियों को वैश्याबृति की तरफ धकेल रहा था ।जब पोल खुलने कीआशँका हुई तो अंकिता को मौत के मुह मे धकेल दिया । इस घटना से आर्य समाज के संनेदनशील लोगों मे भी आक्रोश है वे मांग कर रहे है कि इन गुप्ता बन्धुओं को आर्य समाज की प्राथमिक सदस्यता से निस्कासित कर दिया जाय । आर्य जन उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड की आर्य प्रतिनिधि सभाओं से मांग कर रहे है कि ने सीघ्र ही बैठक कर आर्य पहचान लगाकर नीच हरकते करने वाले इन गुप्ता बन्धुओं को वैदिक सनातन धर्म की आर्य समाज की उस शाखा से निलम्बित व निस्कासित करे जिस शाखा मे ये सदस्य है यदि सदस्य नही भी है तो यह स्पष्ठ करे कि आर्य उपनाम लगाकर अनार्यो जैसा ब्यवहार करने वालो के लिये यह पहचान लगाना उचित नही है ।
आर्य जगत ने पत्रकारों सामाजिक कार्यकर्ताओ अंकिता के शुभचिन्तकों से अपील की है कि अंकुर आदि की पहचान आर्य के बजाय उसके वास्तविक सरनेम से करे , आर्यप्रतिनिधि सभा उत्तराखण्ड के पूर्व मन्त्री दयाकृष्ण काण्डपाल ने कहा कि जो ब्यक्ति या महिला आर्य धर्म के अनुरूप आचरण करे वही अपने नाम के साथ आर्य लगाये , आर्य शब्द सामाजिक उत्तरदायित्व का प्रतीक है ,नीच हरकतों का नही ।