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रुद्प्रयाग 29 दिसम्बर , बिगत दिनों रुद्रप्रयाग जनपद के ऊखीमठ ब्लाक के अन्तर्गत पापट बरसाल के दर्जनों परिवारों ने 57 वर्षों से काबिज होंने के बाद भी मालिकाना हक नही मिलने पर नेशनल हाईवे पर जाम लगा दिया । जिससे प्रशासन के हाथ पांव फूल गये । प्रशासन तथा वन विभाग द्वारा सकारात्मक कदम उठाने के आस्वासन के बाद ग्रामीणों ने मार्ग खोला ।

एक ओर जहां मैदानी जनपदों में सरकार जमीनों के पट्टे देकर लोंगों को उनकी जमीमों पर मालिकाना हक दे रही है वही पर्वतीय जनपदों मे उदासीनता है

उत्तराखण्ड़ सरकार द्वारा वर्ग चार की जमीनों में पहले ही मालिकाना हक दे दिया है पर वर्ग सात की वे जमीने जिन पर लोग पहले सेे ही काविज है उन पर फैसला नही लिया गया है । नये नये कब्जेदार जमीनों के मालिक बन रहे है पर सदियों से जिन जमीनो मे मानवीय गतिविधियां है उन जमीनों मे मालिकाना हक नही है । प्रदेश के पर्वतीय जनपदों मे ग्रामीणों की वन विभाग के साथ एक प्रकार से साझेदारी है। यहां खेत यदि किसानों के है तो भीड़ो मे वन विभाग का स्वामित्व है ऐसे मे वनाधिकार कानून के दायरे में पर्वतीय समाज पहले से ही है ।

सरकार को पहाड़ों मे वनाधिकार कानून 2006लागू कर चकबन्दी करनी चाहिये यह विभन्न संगठनों की मांग है ।

उजड़़ते पहाडो को फिर से आबाद करने के लिये उत्तराखण्ड़ मे त्रिवेन्द्र सरकार ने पलायन आयोग बनाया था पलायन आयोंग के निस्कर्षो मे यह बात शामिल थी कि पहाड़ो रोजगार के अभाव मे पलायन हों रहा है पर पलायन का प्रमुख कारण घटती जोत व बढती आबादी भी है । लोंगों के पास अपने आवासों के लिये भी भूमि नही है । हजारों लोग सरकारी भूमि मे बसे है अब वह भी कम पड़ रही है । इस पर भी तुर्रा यह है कि इन जमीनों मे उनका मालिकाना हक तक नही है । उत्तराखण़्डी व बेहद ईमानदारी से जीवन जीने वाला पर्वतीय समाज अपनी आवाज उस दबंगता से सरकार के सामने नही रख पाता जिस प्रकार तराई मे बस रहे या बसाये जा रहे लोग उठा पाते है । यदि पहाडों मे मानवीय गतिविधियों को बनाये रखना है ,तो भूमि बन्दोवस्त , बनाधिकार कानून व चैकवन्दी तथा जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक जरूरी है अन्यथा कंक्रीट के जंगलो शहरी लोंगो व प्रशासन के के अलावा यहां पलायन के कारण बिरान गांव ही नजर आइगे ।

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