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अल्मोडा(उत्तराखण्ड) बीज सत्याग्रह यात्रा के दूसरे चरण में यात्रा मे अल्मो़ड़ा पहुंचे अभियान दल मे शामिल सदस्यों का यहां स्वागत किया गया ।यात्रा मे शामिल सदस्यों ने बताया कि यह यात्रा राजस्थान के बाद 22 दिसम्बर को उत्तराखण्ड पहुँची। 23 दिसम्बर को नैनीताल जिले के रामगढ़ व दुत्कानेधार गाँव में किसानों के साथ खेती से जुड़े मुद्दों पर बातचीत हुई। यह जानकारी देते हुवे स्वप्निल श्रीवास्तव ने बताया कि यह अभियान जारी रहेगा । उत्तराखण्ड का यह इलाका फलों के उत्पादन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। खुमानी, प्लम, सेब, आड़ू व अखरोट का उत्पादन होने के कारण यह क्षेत्र उत्तराखंड का फलों का कटोरा नाम से भी प्रसिद्ध है। इसके अलावा राजमा, मक्का व सब्जियों की भी खेती होती है। किसानों ने कहा कि फलों का उत्पादन तो यहाँ बहुत होता है परन्तु इसका फायदा किसानों से ज़्यादा बड़े व्यापारियों को होता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर यहाँ पर फलों की प्रोसेसिंग कर मुरब्बा, अचार, चटनी, जैम व अन्य उत्पाद बनाने का स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण दिया जाय व लघु इकाइयां खोली जांय जिनके संचालन की जिम्मेदारी उन्हीं के हाथों में हो तो एक बड़ा बदलाव हो सकता है। यात्रा में शामिल स्वराज विद्यापीठ के श्री विकास शर्मा जी ने इस सम्बन्ध में कहा कि छोटे कुटीर उद्योगों के द्वारा ही बड़ा बदलाव हो सकता है। कुटीर उद्योगों के द्वारा ही हम समाज में समरूपता की ओर बढ़ सकते हैं। स्वप्निल श्रीवास्तव ने बीज सत्याग्रह के उद्देश्यों से ग्रामवासियों को अवगत कराया और कहा कि उत्तराखण्ड में बीजों को बचाने व उनका संवर्धन करने की परम्परा रही है। बड़ी कंपनियां लगातार उत्तराखण्ड के संसाधनों को अपने हाथों में लेने की ओर बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं। थोड़े से लालच में पड़कर हम अक्सर अपने संसाधनों को दूसरों के हाथों में सौंप देते हैं हमें इसे रोकना होगा। कृषि को केन्द्र में रखकर कुटीर उद्योगों के संचालन के द्वारा हम इसे रोक सकते हैं। बेरोजगारी की समस्या जो उत्तराखण्ड सहित पूरे देश में फैली हुई है उसके निवारण के रूप में यह मॉडल कहीं अधिक कारगर होगा। निश्चित रूप से हमसब मिलकर एक बड़े बदलाव को जन्म दे सकते हैं। चर्चा में हरीश सिंह, रमन अस्थाना, रोमा व प्रकर्ष ने भी अपने विचारों को साझा किया। 24 दिसम्बर को अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट स्थित स्व. श्री मदन मोहन उपाध्याय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में विद्यार्थियों व अध्यापकों से बात करते हुए स्वप्निल श्रीवास्तव ने बीज सत्याग्रह यात्रा के उद्देश्यों को साझा करते हुए कहा कि यह उपयुक्त मंच है अपनी बात कहने का। उत्तराखण्ड की धरती आत्मबलिदान की सबसे बड़ी गवाह रही है। मानव जीवन ही नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रकृति को यहाँ के लोगों ने समझा है चिपको आन्दोलन जिसका एक बड़ा उदाहरण रहा है। आज इस आन्दोलन की शुरूआत हुए लगभग 50 वर्ष हो रहे हैं। वर्तमान परिस्थितियों में चिपको आन्दोलन की कहीं ज़्यादा आवश्यकता महसूस हो रही है इसके लिए युवाओं को एकजुट होकर जमीनी स्तर पर काम करना होगा।जल, जंगल जमीन के प्रति युवाओं की समझ बहुत है बस जरूरत है उसे जमीन पर उतारने की। इस समझ को विकसित करने में स्त्रियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उत्तराखण्ड की बेटियों ने यह भूमिका सदैव निभायी है और आगे भी उन्हीं पर ज़्यादा जिम्मेदारी है। बेटियाँ जीवनदात्री हैं, उनके बिना जीवन की बात की ही नहीं जा सकती हमें उनके आत्मसम्मान व स्वावलंबन को समझना होगा। उसी तरह यह धरती हमारी माँ है, जीवनदायिनी है। आज हम उसका अन्धाधुन्ध दोहन कर रहे हैं। भोग विलास की मानसिकता के कारण हम धरती के दर्द को नहीं समझ पा रहे हैं। खेती किसानी में अन्धाधुन्ध रासायनिक उर्वरकों का, रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कर हम उसे असीमित प्रताड़ना दे रहे हैं। अपनी धरती माँ को बंजर बना रहे हैं। बीजारोपण के द्वारा ही हम जीवन का सूत्रपात करते हैं और आज हमारे देसी बीज ही हमारे पास नहीं हैं। हम उनके संरक्षण व संवर्द्धन के तरीकों को भूल गये हैं। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने बीजों को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। बीजों पर नियंत्रण अर्थात जीवन पर नियंत्रण। हमें इस खतरे को समझना होगा। बीजों के संरक्षण व संवर्धन के काम बेटियाँ ही अच्छे ढंग से कर सकती हैं और वही अपने प्रयासों से इस धरती को जहरीली होने से बच सकती हैं। हमें जहरीली कंपनियों को और जहरीली सोच को भगाना होगा। तभी हम स्वराज के रास्ते पर चल सकेंगे। महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने कहा कि इस अभियान में वे शामिल होना चाहेंगे।
25 दिसम्बर को कौसानी स्थित अनासक्ति आश्रम में बातचीत के दौरान श्री रमेश मुमुक्षु ने कहा कि पलायन उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या है और इसका कारण है बेरोजगारी। उत्तराखण्ड में पर्यटन को आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत मन जाता है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से चारधाम यात्रा को विशेष महत्व दिया गया परन्तु आज भी उत्तराखण्ड में ऐसे स्थल हैं जिनका महत्व चार धाम से किसी भी मामले में कम नहीं है। हमें इस तंत्र को विकसित करना होगा जिससे कुमांयू क्षेत्र में भी पर्यटन के द्वारा रोजगार सृजित हो सके। इसके लिए उन्होंने नवधाम यात्रा के अपने विचार को भी साझा किया। दन्या के बसन्त पाण्डे जिनकी पहचान जल जंगल जमीन के मुद्दों को आम जनता के बीच ले जाकर व्यापक बनाने से रही है उन्होंने कहा कि जल जंगल जमीन पर बड़ी कंपनियों के कब्जे के विरोध की बात ठीक है परन्तु बिना रचना के संघर्ष का कोई मतलब नहीं होता है। हमें स्थानीय स्तर पर रोजगार के साधन ढूंढ़ने होंगे। इसी दिशा में अपने द्वारा किये जा रहे प्रयासों को भी साझा किया जिसमें रुद्राक्ष वन, तुलसी वन के साथ ही साथ जड़ी बूटियों की खेती, जैविक खेती व उत्पादों की प्रोसेसिंग व मार्केटिंग के अलावा होम स्टे भी शामिल है।
अल्मोड़ा में उत्तराखण्ड के अमर आन्दोलनकारी डॉ शमशेर सिंह बिष्ट जी के घर पर हुई चर्चा में बेरोजगारी व जैविक खेती से जुड़े मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि किसानों की समस्या बड़ी ही गम्भीर है और इससे निदान पाने के लिए हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। सिर्फ बाज़ार आधारित खेती को ध्यान में रहकर अगर हम खेती करेंगे तो हम वर्तमान समस्या से मुक्त नहीं हो पाएंगे। हमें उस खेती को अपनाना होगा जो गाँधी जी के “जो बोओ सो खाओ और जो खाओ सो बोओ ” सिद्धांत पर हो इसके साथ ही हम अगर बाजार आधारित खेती को भी अपनाएं तो किसानी को हम फायदे का भी सौदा बना सकते हैं। आज बड़ी बड़ी कंपनियों ने खेती को लगभग अपने कब्जे में ले लिया है और छोटे व मध्यम किसान के लिए खेती को घाटे का सौदा बना दिया गया है। हमें यह समझना होगा और हम अपने सामूहिक प्रयासों के द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के इस मकड़जाल को काट सकते हैं। श्री विकास शर्मा,बसन्त भट्ट, अजयमित्र बिस्ट, कुनाल तिवारी, अन्नू सहित सभी ने अपने विचारों को साझा किया और जैविक खेती केंद्रित एक ऐसा मॉडल बनाने का संकल्प भी लिया जिसमें कुछ स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सके।
अल्मोड़ा के कटारमल गाँव स्थित गौशाला में हुई एक बैठक में जल जंगल जमीन के मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई जिसमें चीड़ के पेड़ों को हटाकर ऐसे पेड़ों को लगाने की बात के साथ ही साथ वृक्षारोपण के द्वारा इसकी शुरुआत भी की गयी। उत्तराखण्ड लोकवाहिनी के श्री पूरन चन्द्र तिवारी जी ने कहा कि किसी भी आन्दोलन की सार्थकता तभी है जब उसमें संघर्ष के साथ रचना का समावेश हो। हमें वैकल्पिक समाज रचना के विभिन्न आयामों पर काम करने की जरूरत है तभी हम स्वराज के मार्ग पर चल सकेंगे। श्री दयाकृष्ण कांडपाल ने जैविक खेती में गौशाला की उपयोगिता के साथ ही साथ विभिन्न प्रकार के जैविक उर्वरकों व जैविक कीटनाशकों के बारे में भी चर्चा की और कहा कि अब समय आ गया है कि हमें अपने संसाधनों को खुद से विकसित करना होगा और इसी दिशा में हम निरन्तर लगे हुए हैं। स्वप्निल श्रीवास्तव ने किसानों को बीज यात्रा की जरूरत को बताते हुए कहा कि अभी भी भारत में बहुत से उन्नत किस्म के देसी बीज हैं जिन पर कब्ज़ा करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। हमें अपने बीजों को बचाना होगा। उनके संवर्धन व संरक्षण को स्थानीय स्तर पर जगह जगह करने की जरुरत है। हमारा यह कार्य देश निर्माण का अद्वितीय कार्य होगा और इसके द्वारा ही हम देश को कम्पनीराज से बचा सकते हैं।
26 नवम्बर को जल जंगल जमीन व बेरोजगारी के मुद्दे पर उत्तराखंड लोकवाहिनी के श्री राजीव लोचन साह जी के साथ चर्चा हुई। बेरोज़गारी, गरीबी, प्राकृतिक आपदाओं और प्राकृतिक संसाधनों की लूट का , शिक्षा व इलाज मे बढती जा रही लूट और भ्रष्टाचार का रोज़ सामना करना पड़ रहा है। यहां की जमीनों की ही नहीं यहां की प्राकृतिक सम्पदा की लूट दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार पर बदस्तूर जारी है । सरकार और राजनेता गण दोनों मूकदर्शक बन कर बैठे है और यहां का युवा पलायन और बेरोजगारी के दंश को झेल रहा है ।

इन मुद्दों को लेकर उत्तराखण्ड की आम जनता के बीच जाकर उनके विचारों को भी जानने की जरूरत है जिससे विकास के वैकल्पिक मॉडल को खड़ा करने की समझ बन सके। इसके लिए मई व जून 2022 में उत्तराखण्ड यात्रा के विचार पर भी चर्चा हुई। वैकल्पिक समाज रचना व स्वराज के रास्ते पर चलने की दिशा में बीज सत्याग्रह यात्रा एक बीज के रूप में कारगर होगी।

इसी के लिये सबसे संवाद बनाने के उदेश्य से यह संवाद यात्रा है ।

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