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  अपनी जीवन के अन्तिम समय मे अम्बेदकर को पता लगा कि मनुस्मृति की ब्यवस्था उनके पतन का कारण है , तो उन्होने बौद्ध धर्म की ओट में नव बौद्ध  धर्म चलाया इस नव बौद्ध का बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक  की मान्यता से कोई लेना देना नही है ,। अपितु यह पेरियार के नास्तिक मत के निकट है । अम्बेदकर मात्र एक वर्ष 26 दिन के आसपास ही इस मत का प्रचार करते रहे  जिसमे उन्हें कोई विशेष सफलता नही मिली । अपने जीवन के अन्तिम काल  में उन्होंने जो प्रतिज्ञायें की उसमें आध्यात्मिक उन्नति की क्या बातें थी यह स्पष्ठ नही है , पर यह जरूर स्पष्ठ हो रहा है कि उन प्रतिज्ञाओं मे हिन्दु धर्म के प्रतीकों पर प्रहार करने की जिद थी । इसी क्रम मे मनु स्मृति का दहन , अब तो रामचरित मानस का दहन होने लगा तुलसीदास के पैदा होने के सैकड़ो सालों बाद पैदा हुवे अम्बेदकर ने जिस संबिधान को रचा उसमें भी मनुस्मृति की तरह चार वर्ग है सामान्य , ओ बी सी ,एस टी ,एस सी है उन्ही अम्बेदकर के नाम पर यह तांण्डव कर रहे है ।

मनुस्मृति गुण कर्म स्वभाव के आधार पर वर्ण बदलने की आजादी देती है पर संविधान नही

जिस मनुस्मृति को अम्बेदकर ने जलाया उसमे समाज कर्म के आधार पर चार वर्णों मे विभाजित है , जिसमें ब्राह्मण , क्षत्रिय वैश्य व शूद्र वर्ण शामिल है , और भारतीय संविधान मे भी चार वर्ण है जनरल , ओ बी सी, एस टी व एस सी मनु के चारों वर्ण अपने वर्ण मे बदलाव कर सकते है पर अम्बेदकर के संविधान मे वर्ण नही बदल सकते है , यह जन्मजात है , संविधान में किसी को दलित महादलित ओ बी सी एस टी बनाया जा सकता है , पर किसी भी जाति को समान्य जाति नही बनाया जा सकता , जबकि मनु स्मृति मे मे शूद्र सामान्य हो सकता है । मनुस्मृति किसी भी ब्यक्ति को द्विज बनाने का आदेश देती है पर संविधान ऐसा नही करता , बर्तमान मे संबिधान से देश चल रहा है , हम सब संविधान की ब्यवसथाये मानने को विवस है ।अब तो ओ बी सी नेता भी अपने आप को शूद्र कह रहे है , राम मनोहर लोहिया की समाजवादी विरासत सभालने वाले मुलायम के वंसज अखिलेश यादव अपने को शूद्र बताने लगे है उन्होंने रामचरित मानस पर सवाल उठाने वाले बसपा व भा ज पा के पूर्व नेता स्वामी प्रसाद मोर्य को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया । दरअसल ये नेता समाज के एक बड़े तबके को शूद्र वर्ण मे दिक्षित कर उनकी साहित्यिक व सामाजिक चेतना पर ताला लगाना चाहते है । मुद्दों को भटकाना चाहते है गेश मे करोडॉो बेरोजगारो को जातियो मे बाट कर ये सब अपनी सत्ता को मजबूत करना चाहते है , यह कार्य ओ बी सी नेता इसलिये कर रहे है कि उनको एस टी एस सी पर राज करना है ओ वी सी तो उऩके साथ है ही बी जे पी ने जिस राम को सत्ता की चाबी बनाया उसी राम पर सवाल उठाकर ये सत्ता के लोभी अब समाज को बी जे पी के राम से दूर करना चाहते है वास्तविक मुद्दों ले किसी का कोई लेना देना नही है । इस खेल रो हना गेमे ंे भारतीय मीड़िया की सबसे बड़ी भूमिका है । समातन धर्म अब बिद्वामो की चौखट से फिसल कर नेताओं की कठपुतली बन गया है ।

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