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उत्तराखंड राज्य के बने हुए 22 वर्ष हो गए इन 22 वर्षों में उत्तराखंड की सामाजिक इस स्थिति में अत्यधिक परिवर्तन हो गया है उत्तराखंड राज्य बनने से पहले पहाड़ों के गांव में चहल-पहल थी उत्तराखंड राज्य आंदोलन इसीलिए लड़ा गया कि पहाड़ में यह चहल-पहल निरंतर बनी रहे रोजगार के लिए बाहर ना भटकना पड़े शिक्षा और स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था हो सके* इन 22 सालों में राज्य के आंदोलनकारियों की इन मूल भावनाओं में सरकारों द्वार प्रयत्न करना तो दूर अभी तो जो कुछ प्रमुख संस्थान उत्तर प्रदेश के जमाने में पहाड़ों में स्थापित की गई थी हमारी पर्वती राज्य के नाम पर बनी हुई सरकारों ने उन सुविधाओं को भी मैदानी क्षेत्रों में स्थापित कर दिया आंदोलनकारियों ने सपना देखा था कि नए राज्य में एक नई राजधानी गैर सेंड के नाम पर विकसित होगी जहां पर पार्वती राज्य होने का एहसास होगा पिंटू राजधानी के 68 के नाम पर कंक्रीट के महल खड़ी करने के अलावा कोई विशेष कार्य नहीं हुआ है इन 22 सालों में पौड़ी से उसकी कमिश्नरी अघोषित रूप पर देहरादून स्थापित हो चुकी है सर्वाधिक पढ़ाई करने वाले जनपदों में पौड़ी सीट्स पर है अल्मोड़ा नगर व जनपद विरार होने के कगार पर है दूसरे नंबर पर अल्मोड़ा जनपद है जहां से सर्वाधिक पलायन हुआ है इन 22 सालों में लिंगानुपात लिंगानुपात मैं भी भारी अंतर आया है बालिकाओं की संख्या में इकाई कमी हो जाने से विवाह योग्य युवकों का विवाह नहीं हो रहा है रोजगार की स्थिति अत्यधिक खराब हो गई है विधानसभा की पहाड़ों में जो आवंटित सीटें थी नए परिसीमन के बाद उनकी संख्या में कमी आ रही है पड़ोसी राज्य में पहाड़ के 9 राज्य एक दम बिरानी के कगार पर पहुंच गए हैं यदि यही हालत रहे तो एक दिन यहां पूर्ण रूप से बिरानी छा जायेगी ।

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